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जैन-विभूतियाँ नैतिक, धार्मिक व जैन साहित्य के दुर्लभ, महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का संकलन हैं। यह ग्रन्थालय एक ज्ञान तीर्थ है। आप स्वयं धर्म परायण थे और नियमित रूप से सामाजिक, स्वाध्याय व अन्य धर्मानुष्ठानों में संलग्न रहते थे। आपने सैकड़ों थोकड़े, बोल, स्तवन-सज्झाय संग्रहित कर उनका प्रकाशन कराया। आपने ज्ञानोपदेश इकावनी, आत्म हित शिक्षा आदि स्वाध्याय सहायक ग्रंथों की रचना की। आपकी जैनागमों एवं तात्विक ग्रन्थों में विशेष रुचि थी। पुस्तक प्रकाशन समिति गठित कर अपने निर्देशन में आपने श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह नामक विश्वकोश (आठ भाग) प्रकाशित कराया, जो जैन साधकों, सामान्य पाठकों एवं शोधार्थियों के लिए अनुपम ग्रन्थ है। ऐसे सन्दर्भ ग्रन्थ के लिए जैन समाज ही नहीं, साहित्यिक/साधक जगत भी आपका ऋणी है और रहेगा।
आपकी करुण भावना अत्यन्त श्लाघनीय थी। समाज का कोई व्यक्ति अभावग्रस्त छात्र या निर्धन उनके पास अपनी समस्या लेकर पहुँच जाता तो कभी निराश नहीं होता।
आपकी दानवीरता, समाज और धर्म सेवा आदि का सम्मान कर श्री अखिल भारतवर्षीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस ने सन् 1926 में आपको बम्बई में होने वाले सप्तम अधिवेशन का सभापति चुना। आपके नेतृत्व में सम्पन्न यह अधिवेशन अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण व सफल सिद्ध हुआ। अपने अध्यक्षीय अभिभाषण में आपने जैन धर्म को विश्वधर्म रूप में प्रतिष्ठित करने की अपील की, जो समयोचित थी और आज भी प्रासांगिक है। अधिवेशन में लिये गये उल्लेखनीय निर्णयों में प्रमुख थे - श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन समाज के हित के लिए अपना जीवन समर्पण करने वाले सज्जनों का एक 'वीर संघ' स्थापित करना, स्थानकवासी जैन शिक्षा प्रचार विभाग की स्थापना, जैन डायरेक्ट्री बनाना एवं तीनों जैन सम्प्रदायों की एक संयुक्त कॉन्फ्रेंस बुलाना।
सेठिया जी ने जन-कल्याण कार्यों, यथा- प्रिन्स विजयसिंह मेमोरियल हॉस्पिटल निर्माण, अकाल सहायता एवं पशुधन बचाने हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान किया और स्वयं अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया। समाज