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________________ 244 जैन-विभूतियाँ ___57. श्री गणेश ललवानी (1924-1994) जन्म : राजशाही, 1924 पिताश्री : रावतमल ललवानी माताश्री : भृतु बाई शिक्षा : एम.ए. दिवंगति : 1994 लोकोक्ति है 'विद्या विनय प्रदान करती है' किन्तु यह आंशिक सत्य होने पर भी पूर्ण सत्य नहीं है। विनय तो होता है सच्चरित्रता का परिणाम। बहुत से अनपढ़ लोगों में भी विनय की स्निग्ध द्युति जब-तब देखी है। आपने ज्ञान का ढोल-निनाद तो प्रतिदिन हमारे सामाजिक परिवेश में देखने को मिलता ही है। श्रीगणेश ललवानी इसके अपवाद थे। वे अनेक विद्याएँ एवं ज्ञान के अधिकारी विद्वान् होकर भी पांडित्य प्रदर्शन एवं आत्मश्लाघा से कोसों दूर रहते थे। ललवानी परिवार का आदिवास राजस्थान का रतनगढ़ शहर था। किन्तु उत्तरी बंगाल के राजशाही नगर को उन्होंने आजीविका निमित्त अपना आवास बना लिया था। श्री गणेश ललवानी का जन्म राजशाही में 12 दिसम्बर, 1923 के दिन हुआ। राजशाही के भोलानाथ विश्वेश्वर हिन्दू अकादमी में जबकि वे नवम् श्रेणी के छात्र थे रवीन्द्रनाथ टैगोर पर एक कविता लिखकर उन्हें भेजी। रवीन्द्रनाथ ने भी स्व हाथों से लिखकर अपना आशीर्वाद भेजा। 1940 में मैट्रिक पास कर आप कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में भर्ती हुए। यहीं पढ़ाई के साथ-साथ रानाघाट के प्रख्यात संगीतज्ञ स्वर्गीय नगेनदत्त से संगीत सीखा। चित्र बनाना भी इसी समय से प्रारम्भ कर दिया था। सन् 1944 में आपने इतिहास में आनर्स लेकर बी.ए. पास किया। आपकी इच्छा आगे न पढ़कर केवल चित्रकारिता एवं गायन सीखने की थी। अत: दौड़े शान्तिनिकेतन। लखनऊ और बम्बई भी गए। किन्तु मन कहीं नहीं रमा। आप पुन: कलकत्ता लौट
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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