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________________ जैन-विभूतियाँ 223 52. जस्टिस रणधीरसिंह बच्छावत (1907-1986) जन्म : कोलकाता, 1907 पिताश्री : प्रसन्नचन्द बच्छावत पद/उपाधि : बैरिस्टर, विचारपति, उच्च न्यायालय कलकत्ता एवं उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली दिवंगति : 1986 बंगाल के सांस्कृतिक एवं बौद्धिक क्षितिज को अपनी मेधा के आलोक से आलोकित करने वाले जैनधर्मी ओसवालों में श्री रणधीरसिंह बछावत अग्रगण्य थे। एक विधिवेत्ता एवं कलकत्ता उच्च न्यायालय और दिल्ली उच्चतम न्यायालय के माननीय जज के नाते अपने महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिए वे हमेशा याद किये जाते रहेंगे। सन् 1907 में जन्मे श्री बच्छावत की प्रारम्भिक शिक्षा कलकत्ता में हुई। यहीं से उन्होंने एम.ए. किया। वे एक मेधावी छात्र थे। उन्होंने अनेक पारितोषिक जीते, जिनमें बंकिम बिहारी गोल्ड मेडल एवं सर्वेश्वर पूर्णचन्द्र गोल्ड मेडल मुख्य थे। तात्कालीन बंगाल में मेधावी छात्रों के लिए इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बनना सम्मानजनक माना जाता था। श्री बच्छावत भी इंग्लैंड गए एवं सन् 1939 में लंदन यूनिवर्सिटी से एल.एल.बी. की डिग्री ली और बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। कलकत्ता उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस शुरु करते ही चन्द महीनों में ही वे अपनी विश्लेषण की क्षमता एवं अभिव्यक्ति की सरलता के कारण लोकप्रिय हो गए। व्यवसायिक न्याय विधि के वे विशेषज्ञ माने जाते थे। कुछ ही वर्षों में उनकी प्रेक्टिस आसमान छूने लगी। सन् 1950 में उनकी इस विशेषता को मान्यता मिली और वे कलकत्ता उच्च न्यायालय के जज बना दिए गए। मात्र ओसवाल ही नहीं समूची मारवाड़ी जातियों में वे पहले व्यक्ति थे, जिन्हें बंगाल में यह सम्मान हासिल
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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