________________
186
जैन-विभूतियाँ (6 भाग), पत्र चूड़ामणि, प्रतिभा, फूलों का गुच्छा, विषापहार, भक्तामर, रविन्द्र कथाकुंज आदि। अनेक अलभ्य अप्रकाशित ग्रंथों, शिलालेखों, तीर्थों के परिचय एवं विवरण प्रेमीजी ने प्रकाशित किए। विविध वैचारिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक ग्रंथों का प्रकाशन उनकी निष्पक्ष विश्लेषण क्षमता एवं विवेचनात्मक अध्ययनशीलता का परिचायक है। उनके सम्पादित ग्रंथों में 'दौलत विजय', जिनशतक, बनारसी विलास आदि उल्लेखनीय हैं। . प्रेमीजी की प्रज्ञाचक्षु पंडित सुखलालजी संघवी से गहरी आत्मीयता थी। मुनि जिनविजयजी पर भी उनकी गहरी श्रद्धा थी। प्रेमीजी अपनी असाम्प्रदायिक दृष्टि, सरलता एवं निर्भयता के कारण सभी विद्वानों के प्रिय थे।
सत्योन्मुखी प्रेमीजी ने सामाजिक रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों के प्रतिकार के लिए अपनी पत्रिका से एक सुधारपरक आन्दोलन खड़ा किया। जब विधवा विवाह के पक्ष में उनके लेख निकलने शुरु हुए तो विरोध उठ खड़ा हुआ। सन् 1928 में अपने अनुज नन्हेलाल का विवाह एक विधवा से करा दिया तो उन्हें कई जगह जाति से बहिष्कृत करार दिया गया। पर वे इससे विचलित नहीं हुए।
भारत के उच्चकोटि के विद्वानों एवं जैन समाज ने उनकी साहित्य एवं समाज सेवा के अभार स्वरूप "प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ' प्रकाशित कर उनका सम्मान किया। 30 जनवरी, 1959 को मुंबई में प्रेमीजी का निधन हुआ।