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जैन-विभूतियाँ
179 में वहाँ डॉ. दरबारीलाल कोठिया और पं. परमानन्द शास्त्री प्रभृति कई विद्वान साहित्य-साधनारत रहते थे। बाद में उनके प्रशंसक कतिपय उदार धनिकों के आग्रह और सहयोग से इस महत्त्वपूर्ण शोध संस्थान को राष्ट्रीय गरिमा प्रदान करने हेतु दिल्ली स्थानान्तरित किया गया। 17 जुलाई, 1954 को साहू शांति प्रसाद ने नये भवन का शिलान्यास किया था। किन्तु किन्हीं कारणों से दिल्ली में मुख्तार साहब का मन अधिक समय तक नहीं रम सका और वह जीवन के अंतिम वर्षों में अपने भतीजे डॉ. श्रीचन्द संगल के पास एटा आकर रहने लगे। वहीं 61 वर्ष 2 दिन की वय पाकर 22 दिसम्बर, 1968 के दिन अपनी पार्थिव देह त्याग कर उन्होंने महाप्रयाण किया।
वे इतने निस्पृही थे कि उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति साहित्य साधना को अर्पित कर दी। मृत्यु से पूर्व अपनी शेष निजी सम्पत्ति का वे एक ट्रस्ट बना गए जिससे उनकी मृत्योपरांत कई पुस्तकें प्रकाशित हुई।
प्राच्य-विद्या-महार्णव, सिद्धान्ताचार्य एवं सम्पादकाचार्य विरुदों से विभूषित 91 वर्षों तक धर्म एवं समाज की सतत सेवारत पं. जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' वस्तुत: जैन साहित्य-संसार के भीष्मपितामह थे।