SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-विभूतियाँ 151 रहा है। फिर भी उन्होंने अपने गार्हस्थिक उत्तरदायित्व निभाने में कसर न छोड़ी। सन्तानों की सुख-समृद्धि के लिए वे सदैव सचेष्ट रहे। सन् 1955 में तेरहवीं पुस्तक के प्रकाशन समय पर डॉ. जैन एक अन्य कारण से उद्विग्न हो उठे। ग्रंथमाला का कोष समाप्त हो गया था, ग्रंथों की बिक्री उत्तरोत्तर क्षीण होती गई। प्रकाशक संस्था ऋण से दबी जा रही थी। फिर भी उन्होंने हार न मानी। सम्पादन कार्य अबाध गति से चलता रहा एवं धवला के सम्पूर्ण भाग प्रकाशित हुए। सन् 1958 में बिहार सरकार ने डॉ. जैन को आमंत्रित कर वैशाली में जैनधर्म और प्राकृत-अपभ्रंश भाषाओं के अध्ययन एवं शोधार्थ केन्द्र संचालन का भार उन्हें सौंपा। डॉ. जैन उसे मूर्त रूप देने में व्यस्त हो गये। अल्प काल में ही यह संस्थान जैन विद्या के विद्वानों का निर्माण स्थल बन गया। डॉ. सिकदार, डॉ. विमलप्रकाश जैन, डॉ. राजाराम जैन, डॉ. पठान, डॉ. आर.के. चन्द्रा आदि इसी संस्थान की उपज हैं। सन् 1960 में मध्यप्रदेश शासनान्तर्गत साहित्य परिषद्, भोपाल के आमंत्रण पर उन्होंने जैन इतिहास, साहित्य दर्शन और कला पर चार व्याख्यान दिए, जिसे परिषद् ने सन् 1962 में 'भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान' नाम से प्रकाशित किया। इस ग्रंथ का मराठी, कन्नड़, अंग्रेजी आदि भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। सन् 1961 में डॉ. जैन जबलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के आग्रह पर जबलपुर आ गये एवं यहाँ संस्कृत विभाग का आचार्य पद सम्भाला। सन् 1969 तक वे इसी से सम्बद्ध रहे। उनकी प्रेरणा से विश्व विद्यालय में पाली एवं प्राकृत भाषाओं का अध्यापन चालू हुआ। डॉ. जैन ने अनेक शोध छात्रों का मार्ग निर्देशन किया। सन् 1964 में भारतीय ज्ञानपीठ के आग्रह पर 'मरण परज, करकण्डु चरिउ, सुगन्ध दशमी कथा' आदि ग्रंथों का सम्पादन सम्हाला जो क्रमश: 1964 व 1966 में प्रकाशित हुए। सुगंध दशमी कथा पांच भाषाओं में प्राप्त होती हैं-संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, मराठी और गुजराती। डॉ. जैन ने कथा के अनुरूप मराठी प्रति के साथ उपलब्ध 67 रंगीन चित्रों को भी ग्रंथ में
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy