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जैन-विभूतियाँ 34. डॉ. पं. सुखलाल संघवी (1880-1978)
जन्म : लिमली (सौराष्ट्र) 1880 पिताश्री : संघजी तलणी धाकड़
(धर्कट, श्रीमाली) माताश्री : माणेक बहन पद/उपाधि : न्यायाचार्य, D. Lit.,
पद्मभूषण (1974),
विद्या वारिधि (1975) सर्जन/सम्पादन : 'सन्मति तर्क', 1920 दिवंगति : अहमदाबाद, 1978
बीसवीं शदी के दृष्टिविहीन द्रष्टा (प्रज्ञाचक्षु), सरस्वती के उपासक एवं आधुनिक भारत के ज्ञानाकाश के उज्वल नक्षत्र थे-पं. सुखलालजी संघवी। सम्पूर्णत: भारतीय संस्कृति एवं साहित्य की सेवा-साधना को समर्पित बहुमुखी प्रतिभा के धारक पंडितजी देश के सर्वोत्तम संस्कृत विद्वानों में गिने जाते थे। 'सन्मति तर्क' जैसे प्राचीन जैन ग्रंथ का वैज्ञानिक पद्धति से सम्पादन कर उन्होंने भारतीय मनीषा का गौरव बढ़ाया। इस ग्रंथ की प्रत्येक पाद टिप्पणी में उनके अगाध पांडित्य के दर्शन होते हैं।
आपका जन्म श्रीमाली बीसा वंश के धाकड़ (धर्कट) गौत्रीय संघवी कुल में सौराष्ट्र के एक छोटे से ग्राम लिमली में 8 दिसम्बर, सन् 1880 में हुआ। पिताश्री संघजी धाकड़ छोटे मोटे व्यवसायी थे। माता माणेक बहन धर्मपरायण महिला थी। बालक जब मात्र 4 वर्ष का हुआ कि माता गुजर गई। माँ की अनुपस्थिति में उसका लालन-पालन दूर के सम्बंधी सायला निवासी मूलजी काका ने किया। मात्र 7 वर्ष की वय में ही बालक ने दूकान पर बैठना शुरु कर दिया। वे साहसप्रिय थे एवं जिज्ञासु वृत्ति से भरपूर थे। बचपन से ही श्रमप्रिय थे। कौटुम्बिक कार्यों में हाथ बंटाना उनके स्वभाव में था। बाजार जाना, अनाज तहखानों में भरना