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________________ जैन-विभूतियाँ 129 सन् 1927 में श्री मेहता पी.एच-डी. की उपाधि एवं बैरिस्ट्री का प्रशिक्षण पूर्ण कर भारत लौटे। इंग्लैंड में रहते हुए उन्होंने वहाँ के कुछ श्रेष्ठ स्कूलों का निरीक्षण किया। भारत लौट कर सन् 1931 में उन्होंने उदयपुर में 'विद्याभवन' की नींव रखी। कालांतर में वहाँ बुनियादी शाला, शिक्षक महाविद्यालय, कला संस्थान तथा ग्राम विद्यापीठ खुले। विद्या भवन को शांति निकेतन के समकक्ष वृहद् शिक्षा संस्थान बना देने का श्रेय श्री मेहता को ही है। राज्य सेवा में राजस्व अधिकारी की हैसियत से वे गाँव-गाँव का दौरा करते थे और किसानों के साथ गहरी सहानुभूति के कारण अत्यंत लोकप्रिय हो गये थे। बाद में मेवाड़ राज्य के मुख्यमंत्री बनने पर भी उन्होंने सर्वदा जनहित को अपना लक्ष्य रखा। सन् 1937 से 1940 एवं 1944 से 1946 तक वे बांसवाड़ा राज्य के प्रधानमंत्री रहे। . . . - (मेवाड़ के महाराणा श्री मेहता एवं अन्य) देश स्वतंत्र होने के बाद श्री मेहता देशी राज्यों की ओर से संविधान सभा के सदस्य मनोनीत हुए। भारत सरकार ने उनकी प्रशासनिक क्षमता का सम्मान करते हुए उन्हें विदेशों में राजदूत नियुक्त किया। सर्वप्रथम सन् 15.9 में उन्हें नीदरलैण्ड का राजदूत नियुक्त किया गया। लगातार चौदह वर्ष तक हालैंड, पाकिस्तान तथा स्विट्जरलैंड में भारतीय राजदूत रहकर उन्होंने देश का गौरव बढ़ाया। सन् 1958 पे
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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