________________
122
जैन-विभूतियाँ 31. श्री चम्पतराय बैरिस्टर (1872-1942)
H
जन्म पिताश्री दत्तक माताश्री दिवंगति
: दिल्ली, 1872 : लाला चन्द्रभान : लाला सोहनलाल : पार्वती देवी : करांची, 1942
ERE
NEE
REP-FANTARA
जैन धर्म की बीसवीं शदी की प्रभावक विभूतियों में विद्या वारिधि श्री चम्पतराय का नाम अग्रगण्य है। उन्होंने तन-मन-धन से विदेशों में धर्मप्रचार का स्तुत्य कार्य अंजाम दिया। अर्वाचीन युग के दृढ़ संकल्पी एवं श्रद्धाशील जैनों की श्रृंखला की वे स्वर्णिम कड़ी थे।
उन्नीसवीं शदी के उत्तरार्ध में लाला चन्द्रभान दिल्ली आकर बसे। सन् 1872 में लालाजी की सहधर्मिणी पार्वतीदेवी की कुक्षि से एक बालक का जन्म हुआ। नाम रखा गया-चम्पतराय। माता पिता के परम्परागत जैन संस्कारों में बालक का पालन पोषण हुआ। देव दर्शन, पूजन, शास्त्र वाचन, शाकाहार, रात्रि भोजन निषेध आदि संस्कार सहज ही उन्हें विरासत में मिले। उनके जन्म से पूर्व पार्वती देवी ने तीन बालकों को जन्म दिया था पर वे सभी अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। अत: एकमात्र संतान चम्पतराय को माता-पिता का अगाध प्यार मिला। मात्र छ: वर्ष की वय में माताजी चल बसी। ऐसी हालत में चन्द्रभानजी के अग्रज लाला सोहनलाल ने उन्हें गोद ले लिया। चन्द्रभानजी दिल्ली के श्रीमंतों में अग्रगण्य थे। चम्पतराय की शिक्षा दिल्ली में ही हुई। पूर्व जन्म के पुण्य फल से बालक का देह-सौन्दर्य अपूर्व था। वे बुद्धिशील भी कम न थे। प्रथम श्रेणी में मेट्रिक उत्तीर्ण होने के बाद दिल्ली के प्रसिद्ध महाविद्यालय 'सेंट स्टीफन कॉलेज' में प्रवेश मिल गया। स्नातकीय परीक्षा उत्तीर्ण होने पर सन् 1892 में 'बेरिस्टर' शिक्षण हेतु उन्हें इंग्लैंड भेजा गया। सन् 1897. में शिक्षा सम्पूर्ण कर वे भारत लौटे।