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________________ 119 जैन-विभूतियाँ 30. श्री वीरचन्द राघवजी गाँधी (1863-1901) जन्म : 1863 महुआ ग्राम (भावनगर) पिताश्री : राघवजी गाँधी शिक्षा : बी.ए. दिवंगति : 1901, मुंबई काल की रैती पर जमे कुछ चरण ऐसे होते हैं जो आँधी और तूफान आने पर भी मिटते नहीं, ज्यों के त्यों अमिट रहते हैं। सभ्यताएँ ऐसी विभूतियों के सम्बल पर ही जीवित रहती हैं। सदियों से विश्रुत जैन धर्म को विश्व के पटल पर जीवंत संप्रेषित करने वाले प्रथम पुरुष के रूप में धर्मवीर श्री वीरचन्द राघवजी गाँधी सदैव स्मरणीय रहेंगे। भावनगर के निकट महुआग्राम के श्रेष्ठि राघवजी गाँधी के घर सन् 1863 में वीरचन्द्र भाई का जन्म हुआ। राघवजी का परिवार व्यावसायिक प्रामाणिकता एवं धर्मपरायणता के लिए प्रसिद्ध था पर लक्ष्मी की कृपा न थी। वीरचन्द भाई ने सन् 1884 में एलफिंस्टन कॉलेज से बी.ए. की स्नातकीय परीक्षा उत्तीर्ण की। वे धनारा जैन समाज के प्रथम स्नातक थे। सन् 1890 में पिता के देहावसान पर इस क्रांतिद्रष्टा ने रूढ़िवादी परम्पराओं को तिलांजलि देकर समाज का मार्गदर्शन किया। उस समय तक जागीरदारी प्रथा कायम थी। पालीताणा तीर्थ दर्शन के लिए आने वाले जैन यात्रियों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता था। उन्हीं दिनों विभिन्न जैन समाजों के संगठन तीर्थों की सुरक्षा एवं पशुवध रुकवाने के निमित्त स्थापित "जैन एशोसियशन ऑफ इंडिया' के वीरचन्द भाई मंत्री चुने गए। आपके नेतृत्व में संस्था ने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। जैनों की प्रतिनिधि सभा 'आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी' ने पालीताणा के ठाकुर सूरसिंह से इन कुप्रथाओं को समाप्त करने की
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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