________________
जैन-विभूतियाँ
109 थी। अत: दूसरे ही दिन ''भारत मित्र'' पत्रिका के कार्यालय पहुंचे और लिखना शुरु किया। जब तक परीक्षा की कॉपियाँ जाँच के लिए पहुँची, नाहर जी ने अपने आपको अधिकारी परीक्षक बना लिया। पी.आर.एस. के बोर्ड में भी आपने परीक्षक का कार्य किया।
... बाल्यावस्था से ही आपको भ्रमण का बहुत शौक था और आपने प्राय: समस्त प्रसिद्ध जैन तीर्थों की यात्रा भी की। यात्रा के साथ-साथ आप पुरानी वस्तुओं तथा तीर्थों में मूर्तियों पर खुदे लेखों का संग्रह करते रहते थे। मृत्यु के कुछ दिन पूर्व ही आप दक्षिण भारत के प्रसिद्ध स्थानों तथा शत्रुजय आदि गुजरात और राजपूताना के तीर्थों की यात्रा कर लौटे थे।
आप एक उच्च कोटि के विद्वान् थे। आपका इतिहास एवं पुरातत्त्व सम्बन्धी शौक बहुत बढ़ा चढ़ा था। प्राचीन जैन इतिहास की खोज में आपने बहुत कष्ट सहा और धन भी बहुत खर्च किया। आपने 'जैनलेख-संग्रह' (तीन भाग), 'पावापुरी तीर्थ का प्राचीन-इतिहास', 'एपिटोम ऑफ जैनिज्म' तथा 'प्राकृत सूत्र रत्नमाला' आदि ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं। ये ग्रंथ ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण और नवीन अनुसन्धानों से पूर्ण हैं। जैन लेख संग्रह में जैनों के 3000 प्राचीन शिलालेखों का सन्निवेश है। यह ग्रंथ जैन इतिहास का प्रमाणिक दस्तावेज माना जाता है। "एपीटोम ऑफ जैनिज्म'' ग्रंथ में आपने प्राच्य व पाश्चात्य दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। सहलेखक कृष्णचन्द्र घोष के अनुसार भारतीय दर्शन के इतिहास लेखन में यह ग्रंथ मील का पत्थर साबित हुआ है।
आपकी विद्वता एवं तीर्थ सेवाओं पर समस्त ओसवाल जाति एवं सम्पूर्ण जैन समाज को नाज था। आपने श्री महावीर स्वामी की निर्वाण भूमि 'पावापुरी' तीर्थ तथा 'राजगृह' तीर्थ के विषय में समय, शक्ति और अर्थ से अमूल्य सेवा की है। पावापुरी तीर्थ के वर्तमान मन्दिर, जो बादशाह शाहजहाँ के राजत्वकाल में सं. 1998 में बना था, उस समय की मन्दिर-प्रशस्ति, जिसके अस्तित्व का पता न था, आपने ही मूलदेवी