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[ viii ] अपने भावों या प्रश्नों के अनुसार ग्रहण कर लेते हैं। इन किरणों की तुलना लगभग मस्तिष्क द्वारा होने वाले दूर-सम्प्रेषण (telepathy) से की जा सकती है।
तीर्थङ्कर भगवान् अपनी दिव्य ध्वनि के माध्यम से सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, साम्य, मैत्री, समता, अनेकान्त का उपदेश करते हैं । उस समोशरण में जन्मजात बैरी प्राणि, भगवान् की पुण्य-प्रकृति एवं पवित्र वातावरण के कारण वैरत्व को भूलकर एक साथ कैसे बैठते हैं ? आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार शुभ, पवित्र, अहिंसात्मक भावनाओं से भावित पुरुषों से एल्फा किरणें निकलती हैं जिससे उनमें दुष्ट प्रकृति उत्पन्न नहीं हो पाती । ऐसे जगत् उद्धारक महान् पुरुष अन्त में समस्त कलंक, शरीर व कर्म से रहित होकर एक समय विश्व के शिखर पर विराजमान हो जाते हैं, उन्हें ही शुद्ध, बुद्ध, तीर्थङ्कर, अविकारी कहते हैं।
इस पुस्तक क्रान्ति के अग्रदूत' में इसके रचयिता उपाध्याय श्री कनक नन्दी जी ने तीर्थङ्करों की इन्हीं विशेषताओं को अपनी रोचक, सरल शैली में विभिन्न उद्धरणों द्वारा समझाने व सिद्ध करने का प्रयास किया है । आशा है हम सभी इसके अध्ययन, मनन से कुछ लाभ उठाने का प्रयत्न करेंगे व धीरे-धीरे उसी उत्तम पद की प्राप्ति की ओर अग्रसर होंगे।
दिनांक : 4 सितम्बर, 1990
अनन्त चतुर्दशी
-प्रभात कुमार जैन
48-कुञ्ज गली, मुजफ्फरनगर (उ० प्र०)
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