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होना, निरोगता आना, देश की सम्पत्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि होना आदि शुभ परिणाम दिखायी देने लगते हैं। इसका कारण यह है कि प्रकृति की प्रत्येक ईकाई परस्पर प्रभावित होती है जैसे, सूर्योदय होने पर अंधकार का विलय होना, सभी प्राणियों का जागना व ऊर्जा लेना, पेड़-पौधों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण से भोजन तैयार करना आदि । जैसे चन्द्र से प्रभावित होकर ज्वार-भाटा आते हैं, वैज्ञानिक शोध से सिद्ध हुआ है कि सूर्य विस्फोट से, सूर्य-कलंक (Sun spot) से पृथ्वी का चुम्बकीय बल प्रभावित होकर प्रकृति भी प्रभावित होती है जैसे-भूकम्प आना, सुभिक्ष या दुर्भिक्ष होना, अति वृष्टि या अनावृष्टि होना, रोगों का फैलना या समाप्त होना आदि-आदि। यदि सामान्य भौतिक वस्तुओं के परिवर्तन से प्रकृति प्रभावित हो जाती है तब तो विश्व के अद्वितीय, अलौकिक, पुण्यश्लोक, महापुरुष होते हैं उनसे क्या प्रकृति प्रभावित नहीं होगी, निश्चय ही होती है।
वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि शुद्ध व सात्विक संगीत से, मन्त्रों से, मनोभावों से प्रेरित होकर वनस्पति अधिक फल-फूल देती है, गाय-भैंस अधिक दूध देती हैं, इसी से सिद्ध होता है कि तीर्थकर के आगमन से मनोभावों में, प्रकृति में एक अभूतपूर्व शुद्धता आती है जिससे उपर्युक्त शुभ घटनायें घटित होती हैं।
कुछ तीर्थङ्कर पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवस्था के लिये तथा सुसन्तान के लिये विवाह करते हैं एवम् राष्ट्र की व्यवस्था के लिये राज्य-शासन करते हैं। राज्यशासन के अनन्तर स्व-कल्याण व जगत् उद्धार के लिये वे सर्व सन्यास व्रत स्वीकार करके कठोर आत्म-साधना में लीन हो जाते हैं और कुछ तीर्थङ्कर आजीवन ब्रह्मचर्य स्वीकार करके कुमार-अवस्था में ही दीक्षा धारण कर लेते हैं।
कठोर आत्म-साधना से जब वे ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय, मोहनीय एवं अन्तराय रूपी घातिकर्मों को नष्ट करके अनन्त चतुष्टय (अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख व अनन्त वीर्य) को प्राप्त कर लेते हैं। इस अवस्था में पूर्ण आध्यात्मिक शक्तियाँ जाग्रत हो जाती हैं । उनका शरीर सप्त धातु से रहित, शुद्ध स्फटिक मणि के समान पारदर्शी हो जाता है। विशेष पाप कर्म के अभाव से उनका शरीर इतना हल्का हो जाता है कि वे 5000 धनुष (20,000 हाथ) भूपृष्ठ से अधर स्वयमेव उठ जाते हैं। पाप परमाणु, भारी व अपारदर्शी हैं, जिनके अभाव से ही शरीर हल्का व पारदर्शी होता है । जहाँ भगवान् विराजमान होते हैं, वहाँ पर देवताओं के राजा इन्द्र की आज्ञा से, देवताओं के धनपति कुबेर विभिन्न रत्नों से एक वैचित्य-कलापूर्ण विशाल धर्म सभा की रचना करता है जिसे 'समोशरण' कहते हैं। उस समोशरण में केवल मनुष्य नहीं, अपितु देवताओं के साथ-साथ जन्म वैरी पशु-पक्षी भी एक साथ मैत्रीभाव से बैठकर दिव्य ध्वनि से उपदेश सुनते हैं। वह दिव्य ध्वनि एक प्रकार की होते हुए भी, वे भावनात्मक, ज्ञानात्मक व पौद्गलिक तरंगों से मिश्रित होती हैं जिन्हें समोशरण में उपस्थित प्रत्येक प्राणी अपने मस्तिष्क में अपनी ही भाषा में अपने