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(आठवाँ गुण) तुलसी संगत सन्त की, कटे कोटि अपराध
कृतसङ्गः सदाचारैः
सत्संग शाश्वत काल के लिये असंग हो जाना हमारे जीवन का वास्तिविक | स्वभाव है। परन्तु कर्म रूपी पुद्गलों का संग करके हमारे जीव ने महान्दा भूल की है। अब इस कार्य-संग के कारण हमारी आत्मा के विकृत बने हुए रूप-रंग को पुन: मूल रंग में लाने के लिये अत्यन्त आवश्यक गुण है - सत्संग। * संसार के संग से मुक्त होने का उपाय है - सत्संग। * सन्तानों को भी धर्माभिमुख करने का मार्ग है - सत्संग। * मदिरा के व्यसन वालों को भी देव बनाता है - सत्संग। * शुभ संस्कार जागृत करने के लिये आवश्यक है - सत्संग। * बंकचूल जैसे चोरों का भी उद्धारक है - सत्संग। * जिसकी पूर्व शर्त है - कुसंगति का त्याग, ऐसा है - सत्संग। * चण्ड़कौशिक नाग जैसे को देवात्मा बनाता है भगवान वीर का सत्संग।
* इन्द्रभूति जैसे अभिमानी को 'प्रथम गणधर' एवं ‘परम विनयमूर्ति बनाने वाला है महावीर का -सत्संग।
सत्संग की ऐसी महिमा गाने वाले इस गुण का विवेचन अवश्य पढ़ें और उस पर मनन करें। मार्गानुसारी आत्मा का आठवां गुण है - सत्संग।
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