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________________ होने चाहिये। ___ आज भी अनेक श्रावकों के 'शो-केसों में तोता, मैना एवं कप-रकाबी रखने के बदले रजोहरण, पात्रा, चरवला, कटासणा, ज्ञान के साधन और पुस्तकें दृष्टिगोचर होतीहैं। इन्हें देखते ही हमें चारित्र का स्मरण होता है। इसे उत्तम प्रकार की सजावट अथवा श्रृंगार कहते हैं। ___घर में प्रविष्ट होते ही मुख्य शत्रुजय का चित्र अथवा नवकार मंत्र आदि लगाये हुए हो तो घर में प्रविष्ट होते ही साधु-साध्वी अथवा अन्य श्रावकों को ज्ञात हो जाये कि यह श्रावक का ही घर है। यदि अभिनेत्रियों के चित्र हों तो कैसे ज्ञान होगा कि यह किसका आवास है ? 6. आवास जिनालय तथा उपाश्रय के समीप होना चाहिये - दिन के द्वितीय अथवा तृतीय प्रहर में समीपस्थ शिखर-बंध जिनालय की ध्वजा की परच्छाई न पड़ती हो इसका प्रकार का हमारा आवास होना चाहिये। यदि आवास तथा जिनालय के मध्य होकर एक मोटर निकल सके उतना विशाल मार्ग हो तो ध्वजा की परछाई की कोई आपत्ति नहीं है। उपयुक्त विधान इस बात का सूचक है कि हमारा आवास जिस प्रकार उत्तम पड़ोस में होना चाहिये उसी प्रकार से हमारा आवास जिनालय एवं उपाश्रय के समीप होना चाहिये। यदि जिनालय समीप हो तो किसी दिन विलम्ब हो तो भी जिन-पूजा आदि से वंचित नहीं रहना पड़े और सायंकाल में जिन-दर्शन-वन्दन का लाभ प्राप्त हो। यदि उपाश्रय समीप हो तो साधु अथवा साध्वीजी का संयोग होने पर गोचरी-पानी आदि समर्पित करने का सुपात्र दान का लाभ प्राप्त होता है और मुनियों के सत्संगति आदि का भी अवसर प्राप्त होता रहता है। इस प्रकार उचित आवास (घर) होने से अनेक लाभ हैं। इन समस्त लाभों का अत्यन्त अच्छी तरह विचार करके योग्य स्थान पर घर लेना चाहिये। वर्तमान समय में तो विशेषत: उचित घर नामक गुण का पालन होना आवश्यक है। कदम-कदम पर धन एवं धर्म की सुरक्षा की कितनी आवश्यकता है। पापोदय के कारण कहीं अनुचित आवास में फंस गये तो सतत आर्तध्यान यावत् संरक्षणानुबंधी रौद्र ध्यान होने की अत्यन्त सम्भावना है। परिणाम स्वरूप दुर्गति में जाना पड़ेगा। अत: ‘उचित घर' नामक बहुमूल्य गुण के पालन को क्रियान्वित करें, जिसमें ही हमारा हित है। SONGS 1169098909OY
SR No.032476
Book TitleMangal Mandir Kholo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevratnasagar
PublisherShrutgyan Prasaran Nidhi Trust
Publication Year
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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