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मार्गानुसारिता का आठवाँ गुण है - सत्संग। जीवन का वास्तविक स्वभाव तो असंग ही है
ज्ञानी पुरुषों का कथन है, जीव का वास्तविक-स्वभाव तो असंग ही होना है। संग समस्त दुःखों का कारण है, चाहे वह जीव का हो अथवा जड़ का हो।
हमारे जीवात्मा ने कर्मरूपी पुद्गलों का संग किया इस कारण ही उसे संसार में परिभ्रमण करना पड़ रहा है न ? यद्यपि यह कर्म-संग अनादिकालीन है।" जीव अनादि, कर्म अनादि और जीव तथा कर्म का संयोग अनादि है।" यह जैन-दर्शन का मूलभूत सिद्धान्त है। फिर भी असत् कल्पना से हम यह मान लें कि जीव का कर्म के साथ संयोग (संग) ही नहीं होता तो? तो कितना उत्तम होता?
___ तो कर्म के संग के कारण भोगने पड़ते अनन्त दुःख जीव को नहीं होते। जिसमें से ये दुःख उत्पन्न होते हैं वे घृणास्पद पाप नहीं होते, सांसारिक सुख की भयानक लालसा नहीं होती। जन्मजीवन एवं मृत्यु का चक्कर नहीं होता, चौदह राजलोक में जीव का परिभ्रमण नहीं होता और स्वर्ग के असंख्य सुखों के आस-पास लिपटे हुए ईर्ष्या एवं अतृप्ति के भयानक पाप नहीं होते। आराधना का अन्तिम फल-कर्मसंग से मुक्ति -
और हमारी समस्त आराधना का, धर्म का अन्तिम फल है- कर्म के साथ सदा के लिये असंग। कर्म के असंग अर्थात् मोक्षा मोक्ष में जाने के पश्चात् जीव को कर्मों का संग कदापि नहीं रहता और इस कारण ही उस कर्म-संग से जनित संसार जीव को नहीं है। संसार नहीं हो तो दुःख, पाप और भ्रान्ति-जनक सुखों का समूह भी नहीं है।
इस प्रकार शाश्वत सुख के संगी बनने की लिये हमें कर्म-संग से मुक्त होना ही होगा। हमारी समस्त धर्म-क्रियाओं का यहीं अन्ति लक्ष्य (ध्येय) है। परन्तु जीव एवं पुद्गलों के इस संग से मुक्त कैसे हुआ जाये ? इस संग से मुक्त होने का उपाय क्या है? संग-मुक्ति का उपाय है सत्संग -
संग-मुक्ति के लिये शास्त्रकारों ने अनेक उपाय बताये हैं, जिनमें से एक उपाय है - सत्संग। जब तक जीव को शाश्वत असंग दशा प्राप्त नहीं हुई तब तक उसे किसी न किसी पदार्थ का अथवा प्राणी का संग करना ही पड़ेगा। फिर कुसंग का परित्याग करके जीव को 'सत्संग' करना ही उसके
आत्म-कल्याण का उत्तम मार्ग है। मुख्यत: तीन प्रकार के सत्संग -
इनमें सर्वोत्तम संग है - संसार-त्यागी एवं पंच महाव्रतधारी साधु भगवतों का संग। दूसरा है उत्तम अर्थात् धर्मनिष्ठ सज्जन श्रावक-मित्रों का संग। कदाचित् वह मित्र श्रावक न भी हो और मार्गानुसारी के उत्तम गुणों से युक्त हो तो भी वह सुमित्र कहलायेगा और उसका संग भी सत्संग
कहलायेगा। RECORRESS 1189098909Y