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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ (६) खारे समुद्रमें मीठा पानी
सं. २०४३ में अकाल के समय में लालुभा के खेत के आसपास के खेतों में किसानो ने पानी के लिए जमीन में बोरींग (लोहेका पाईप) डाला, मगर वहाँ खारा पानी निकलने से सभी निराश हो गये थे । तब लालुभा ने अपने खेतमें बोरींग डाला एवं वहाँ मीठा पानी निकला । उन्होंने सारे गाँव के लोगों को मीठा पानी बड़ी उदारतासे यथेच्छ रूपसे देकर सभीका प्रेम संपादन किया। . (७) जीवदया का चमत्कार
एक बार ट्रेन्ट गाँवमें जीरे की फसल में बंटी नामका रोग व्यापक रूपसे फैल गया था । मगर अपने खेतमें कभी भी जंतुनाशक दवा नहीं छिड़कानेवाले लालुभा के खेतमें वह रोग लागु न हो सका । यह देखकर गाँवके लोगों को अहिंसामय जैनधर्म के प्रति अत्यंत अहोभाव जाग्रत हुआ।
(८) केन्सर केन्सल हुआ
वि. सं. २०५४ में लालुभा के एक नजदीक के रिश्तेदार को केन्सर की गांठ होने का डॉक्टरोंने निदान किया, तब भी लालुभा ने नवकार महामंत्र के उपरोक्त प्रकारके प्रयोग से केन्सर को मिटा दिया । डॉक्टर भी अचंभित हो गये ।
लालुभा के एक सुपुत्र जयेश ने नवसारी में पूज्यपाद पंन्यास प्रवर श्री चंद्रशेखरविजयजी म.सा. द्वारा प्रेरित तपोवनमें ८ से १० वीं कक्षा तक अध्ययन करके जैन धर्म के सुंदर संस्कार प्राप्त किये हैं।
सुप्रसिद्ध कथाकार श्री मोरारी बापु आदि जैनेतर साधु संत भी लालुभा के आचार विचार एवं उच्चारको देखकर - सुनकर जैनधर्म से अत्यंत प्रभावित हुए हैं।
सचमुच लालुभा का जीवन जैनकुलमें जन्मे हुए अनेक आत्माओं के लिए भी खास प्रेरणादायक है । ..
लालुभा को कोटिशः धन्यवाद एवं उनको धर्म की राह दिखानेवाले पूज्यश्री को कोटिशः वंदन ।