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इसीलिए ही तो चतुर्विध श्रीसंघको रत्नोंका उत्पत्तिस्थान रोहणाचल पर्वत आदिकी उपमा सिंदूर प्रकर आदि प्रकरणों में और श्रीनंदीसूत्र
आदि आगमों में दी गयी है । जैसे जैसे ऐसे गुप्त आराधक रत्नोंकी जानकारी मिलती रहेगी वैसे वैसे इस किताबकी संभवित नूतन आवृत्ति में प्रकाशित हो सकेगी । इसलिए सुज्ञ पाठकों से नम्र निवेदन है कि आपके सुपरिचित ऐसे असाधारण कोटिके आराधक रत्नों के दृष्टांत व्यवस्थित रूपसे लिखकर अवश्य भिजवायें ।
इस किताबमें प्रकाशित दृष्टांतोंमें से कुछ दृष्टांत धर्मचक्र तप प्रभावक प.पू.आ.भ.श्री विजय जगवल्लभसूरिजी म.सा. प.पू. पंन्यास प्रवर श्री चन्द्रशेखर विजयजी म.सा., पं.पू. पंन्यास प्रवर श्री गुणसुंदरविजयजी म.सा., प.पू. पंन्यास प्रवर श्री भुवनसुंदरविजयजी म.सा., गणिवर्य श्री अक्षयबोधिविजयजी म.सा., मुनिराज श्री महाबोधिविजयजी, मुनिराज श्री भद्रेश्वरविजयजी आदि मुनिवरादि के मुखसे सुनकर या पत्र व्यवहार द्वारा अथवा उनके पुस्तकादि द्वारा प्राप्त किये गये हैं, इन सभी महात्माओं का एवं अन्य भी अनेक नामी-अनामी आत्माओं ने प्रस्तुत पुस्तकके संकलन/संपादनमें विविध स्पसे सहयोग दिया है उन सभीका सादर ऋा स्वीकार करते हुए धन्यताका अनुभव करता हूँ।
सुसंयमी, विद्वान्, आत्मीय मुनिराज श्री जयदर्शनविजयजीने आत्मीय भावसे इस किताबके तीनों विभागों के लिए अत्यंत मननीय प्रस्तावनाएँ लिखकर इस किताबकी उपादेयतामें अभिवृद्धि की है इसके लिए उनको भी हार्दिक धन्यवाद देता हूँ । उनका आश्चर्यप्रद दृष्टांत इस किताब के द्वितीय विभाग के प्रारंभमें ही प्रकाशित किया गया है।
श्री बाड़मेर जैन संघ के भाग्यशाली दाताओंने एवं श्री नाकोडा पार्श्वनाथ ट्रस्टने इस प्रकाशन के लिए सुंदर आर्थिक सहयोग दिया है एतदर्थ उन सभी को हार्दिक धन्यवाद ।
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