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कैसी उत्कृष्ट आराधनाएँ करनी चाहिए ऐसी भावना और मनोरथ पूज्यों को भी इन दृष्टांतों को भावपूर्वक पढने से अवश्य उत्पन्न होंगे यह नि:संदेह है।
तीसरे विभाग में असाधारण कोटि की आराधना करने वाले वर्तमानकालीन साधु-साध्वीजी भगवंतों के अत्यंत अनुमोदनीय दृष्टांत दिये गये हैं । इनको पढने से, काल प्रभावसे कहीं कहीं कोई साधु-साध्वीजी भगवंतों के जीवन में शिथिलता और प्रमाद को देखकर-सुनकर या पढकर, सभी साधु-साध्वीजी भगवंतों के प्रति आदर और आस्थासे परामुख बनी हुई नयी पीढी के अंतःकरण में संयमी साधु-साध्वीजी भगवंतों के प्रति पूज्यभाव जाग्रत होगा । कर्म संयोग से प्रमादग्रस्त बने हुए संसार त्यागियों के प्रति भी माध्यस्थ्यभाव उत्पन्न होगा।
कुछ अपवाद रूप दृष्टांतों को बाद करते हुए, इस किताबमें अधिकांश दृष्टांत वर्तमानकालीन ही दिये गये हैं । अति प्राचीन दृष्टांत अत्यंत आदरणीय होते हुए भी आजकल की बुद्धिजीवी नयी पीढी के मानस को आकर्षित करनेमें और आस्थ्या जगाने में कम सफल हो रहे हैं, जब कि वर्तमानकालीन जीवंत दृष्टांतों द्वारा प्राचीन महापुरुषों के प्रति भी आस्था और बहुमान आसानी से जगाया जा सकता है । अगर आजकल के कमजोर संहनन वाले शरीर से भी अठाई और सोलहभत्ते से वर्षीतप करनेवाले, या लगातार २११ उपवास करनेवाले श्रावक-श्राविका विद्यमान हैं, तो प्राचीन कालमें वज्र-ऋभ-नाराच संहननवाले महापुरुष यदि मासक्षमण के पारणे मासक्षमण की तपश्चर्या करते हों या लगातार ४ - ६ महिनों तक उपवास करके आत्मध्यान में निमग्न रहते हों तो उसमें 'असंभवित' कहने का किसीको मौका ही नहीं मिलता। अगर आजके विलासी और भोतिकता प्रधान वायुमंडल के बीच रहकर, शादी के बाद भी भाई बहनकी तरह पवित्र जीवन जीनेवाले दंपति विद्यमान हैं तो प्राचीनकाल के स्थूलिभद्र स्वामी, जंबूस्वामी, वज्रस्वामी आदि महापुरुषों के नैष्ठिक ब्रह्मचर्य को 'अशक्य' कहकर
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