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________________ 424 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 यम , नियम = संयम संयमी को नमो नमः / प्रस्तावना] लेखक : गच्छाधिपति पू. आ. श्री जयघोषसूरीश्वरजी म.सा. के प्रशिष्य मुनि जयदर्शन वि. म.सा. विविध जीव योनिमें जन्म-जीवन मृत्यु के प्रश्चात् जब दुर्लभ मनुष्यावतार की प्राप्ति होती है, तभी वीतराग सर्वज्ञ का धर्म प्राप्त हो सकता है, और उसके बाद ही धर्मश्रवण से निष्पन्न श्रद्धा और श्रद्धा के बाद संयम द्वारा जीव पुरुषार्थ कर मोक्ष महल की चहल-पहल का आंशिक अनुभव उपशम भाव में आकर कर सकता है / इस विभाग में प्रस्तुत संयमी आत्माओं की अनुमोदना हम सब मिल करें उतना ही काफी नहीं किन्तु साथ साथ हम भी संयम धर्म के हार्द को, रहस्य को गहराई से समझकर स्थैर्य-धैर्य से आगे बढकर स्थितप्रज्ञ बनकर संयम का श्रेष्ठ फल-मुक्ति प्राप्त कर लें यही हार्दिक शुभ कामना है। प्रभु वीरके शासन काल की चारित्र साधना पंच महाव्रत पर आधारित है। एक एक महाव्रत की उत्कृष्ट साधना का विश्वव्यापी जो प्रभाव पड़ता है, उसे जानकर भी आश्चर्य हो सकता है। प्रथम अहिंसाव्रत की फलश्रुति से सामने खड़े सिंह और गाय में भी उपशम भाव प्रकट हो जाता है। द्वितीय सत्यव्रत के प्रभाव से ही तो वाणी में 35 अतिशय उत्पन्न होते हैं, और देव-मानव तो ठीक किन्तु तिर्यंच भी तीर्थपति की देशना को अपनी अपनी भाषा में समझ लेते हैं / तृतीय अचौर्यव्रत के प्रभाव से समवसरण में ही उपस्थित 180 क्रियावादी + 84 अक्रियावादी + 67 अज्ञानवादी + 32 विनयवादी = 363 एकांतवादी प्रभु के प्रवचन में से मनपसंद तत्त्व चोरी करके ले जाते हैं, और अपना स्वतंत्र सिद्धांत - धर्ममार्ग स्थापित भी करने का प्रयत्न करते हैं, फिर भी जिनशासन लूटा नहीं जाता, बल्कि प्रभु विरह काल में भी "जैनं जयति शासनम्" का नाद गुंजित है। चतुर्थ ब्रह्मचर्य व्रत की सुविशुद्ध साधना के प्रताप से ही तो सौधर्म देवलोक
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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