________________ 404 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 8-1993 शनिवार दिन वे 6 बछड़ों को कसाइओं से छुड़ाकर, पांजरापोल में जमा करवाकर पशुवाहक टेम्पो में बैठकर घर वापस लौट रहे थे तब दो कसाई युवकों ने स्कुटर से आकर उनकी गाडी को रोका और गीताबहन को गाड़ी से बाहर खींचकर धारदार चप्पू के 18 प्रहार उनके शरीर में कर दिये ... भागते हुए दोनों खूनी युवकों को तुरंत पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया मगर खून से लथबथ गीताबहन के शरीर में से उसी समय प्राण निकल गये थे !... उपर्युक्त घटना का एवं गीताबहन के जीवनकार्यों का विस्तृत वर्णन दि. 13-9-1993 के चित्रलेखा साप्ताहिक के एक सचित्र लेख में दिया गया है मगर पुस्तक की मर्यादा के मद्देनजर यहाँ अतिसंक्षेप में ही उसका . सारांश दिया गया है। गीताबहन की बेरहम हत्या की खबर विद्युतगति से देश भरमें फैल गयी और जैन-जैनेतर हजारों संस्थाओं ने सभाओं का आयोजन करके इस दुष्कृत्य की अत्यंत भर्ना की और गीताबहन को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। उनकी अंत्येष्टि में हजारों की जनसंख्या उपस्थित हुई थी। अहमदाबाद की सभी दुकाने स्वयंभू रूप से बंद रही थीं / गीताबहन की अंत्येष्टि के समय में उनके पति बचुभाई राभिया ने उद्घोषणा की थी कि "मैं भी मेरी धर्मपत्नी की तरह जीवदया के कार्य करता ही रहूँगा / " और उसके मुताबिक इ.स. 1994 से 96 तक केवल 3 वर्ष में स्वयंसेवक, म्यु. कोर्पोरेशन और पुलिस का सहयोग लेकर करीब 10 हजार से अधिक निर्दोष पशुओं को बचाकर अलग अलग पांजरापोल में भेजकर अभयदान का महान सत्कार्य किया है / इन तीन वर्षों में उन्होंने बड़े समूहमें बचाये हुए पशुओं की तालिका निम्नोक्त प्रकारसे है / इ.स. स्थान पशुसंख्या 1994 कच्छ 1995 साबरमती गुड्स ट्रेन 744 980