________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 2 403 की तरह शौर्यशाली गीताबहन गैरकानूनी पशुवध को रोकने के लिए कई बार रबारिन औरत, बुरखाधारी मुस्लिम औरत, दाढी मूंछवाले सरदारजी आदि के वेष पहनकर, तो कभी इन्सपेक्टर के वेष में हन्टर लेकर पशुवाहक गाडीओं को मध्यरात्री में या प्रात: 4 बजे के आसपास अपने साथीदारों के साथ हाईवे आदि विविध स्थानों पर रोककर कसाइओं को डराकर पशुओं को छुड़ाती थीं और पांजरापोल में जमा करवाकर रसीद प्राप्त करती थीं / इस तरह उन्होंने हजारों गाय, भैंस, बछड़े, बैल, भेड़, बकरे आदि पशुओं को अपनी जान को जोखिम में डालकर बचाया था और जबरदस्त पुण्य उपार्जन किया था। ___ कई बार उनको खून की धमकियाँ भी मिलती थीं / तो कभी उनकी बेटी तोरल के अपहरण आदि की धमकी भी मिलती थी, मगर किसी भी धमकी के आगे झुके बिना अपूर्व हिंमत से वह अपना कर्तव्य निभाती थीं / कई बार कसाइओं ने उनके उपर जानलेवा हमले भी किये थे और उनके शरीर पर कसाइओं द्वारा किये गये प्रहार के निशान भी मौजूद थे मगर हजारों निर्दोष प्राणीओं को बचाने के पुण्यकार्य करते हुए अगर अपना नश्वर शरीर चला भी जाय तो उनको उसकी जरा भी परवाह नहीं थी किन्तु जीवों को बचाने का परम संतोष उनके चेहरे पर व्याप्त रहता था। दि. 7-6-1991 के दिन उन्होंने अहमदाबाद के दाणीलीमड़ा विस्तार में से प्रात:काल में 9 बछड़ों को कसाइओं से छुड़ाकर पांजरापोल में जमा कराया था और उसी रात को 11 बजे गीताबहनने अपनी द्वितीय संतान सुपुत्र चैतन्य को जन्म भी दिया था / इसी तरह सगर्भावस्था में भी वे अपने कर्तव्य से पीछेहट नहीं करती थीं। वि.सं. 2049 में हमारा चातुर्मास मणिनगर (अहमदाबाद) में था तब गीताबहन के ऐसे उत्तम कार्यों की अनुमोदना करने हेतु एवं उनको ऐसे कार्यों में सहयोग एवं प्रोत्साहन मिले ऐसी भावना से रविवारीय जाहिर प्रवचन के दौरान उनका बहुमान करवाने का आयोजन किया गया था और उसमें उपस्थित रहने की अनुमति भी प्राप्त कर ली गयी थी; मगर कर्म की विचित्र गति का पार कौन पा सकता है ? दूसरे ही दिन दि. 28