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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ आचार चुस्तता ऐसी कि रात्रिभोजन किसी भी संयोगों में नहीं होने देती थीं । कभी भचुभाई को स्कूलमें से घर लौटने में देरी हो गयी हो
और सूर्यास्त होने में २-५ मिनिट की ही देरी होती थी तब पिरोसी हुई थाली कुत्ते आदि को दे देती, मगर रात्रिभोजन नहीं ही होने देती थीं !
इतनी आराधनाओं के बावजूद भी उनको आराधना में संतोष नहीं था । मानव जीवन को सार्थक बनानेके लिए संयम ग्रहण करना चाहिए ऐसी स्पष्ट प्रतीतिवाली खेतीबाई ने अपनी दोनों सुपुत्रिओं को संयम के मार्ग में आशीर्वाद देकर भिजवायीं । वे आज अध्यात्मयोगी प.पू.आ.भ. श्री विजयकलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय में सा.श्री सुभद्रयशाश्रीजी एवं सा.श्री श्रुतदर्शनाश्रीजी के रूप में संयम की आराधना कर रही हैं।
इतने से भी संतोष न मानते हुए वे स्वयं को दीक्षा की अनुमति प्रदान करने के लिए अपने पतिदेव को भी पुनः पुनः अनुनय करती रहीं और आखिर उसमें सफलता भी मिली । सकचूर जंतु के जहर से बचने के प्रसंग के बाद उनके पतिने भी उनको दीक्षा के लिए प्रसन्नता से अनुमति प्रदान की और आज से ५५ साल की उम्रमें उन्होनें अत्यंत उल्लासपूर्वक उपर्युक्त समुदाय में संयम का स्वीकार किया । खेतीबाई सा. श्री संयमपूर्णाश्रीजी के रूप में नवजीवन को संप्राप्त हुए ।
पूर्व में गृहस्थ जीवन में आत्मा की धरती में धर्म की खेती (कृषि) द्वारा आराधना की भरपूर फसल पैदा करने द्वारा स्वनाम को सार्थक बनानेवाली खेतीबाई दीक्षा लेने के बाद अपने नूतन नाम को भी सार्थक करने के लिए भगीरथ पुरुषार्थ कर रहे हैं।
वर्धमान आयंबिल तप की १०० ओलियाँ पूर्ण की । १०० वीं ओली केवल रोटी और पानी के द्वारा विहार के दौरान पूर्ण की और शंखेश्वर तीर्थ में किसी भी प्रकार के आडंबर के बिना अत्यंत सादगी पूर्वक पारणा किया !
५ साल पूर्व में उन्होंने पालिताना में चातुर्मास किया तब प्रतिदिन तलहटी की यात्रा करने के लिए अचूक जाते थे । चातुर्मास के बाद गिरिराज की ९९ यात्राएँ उल्लासपूर्वक पूर्ण की । पालिताना जैसे क्षेत्रमें भी