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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
प्रतिदिन १२ कि.मी. की दूरी पर जिनपूजा करने के लिए बस द्वारा जानेवाले खेतीबाई भचुभाई देढिया
कच्छ-वागड़ में भचाउ से १२ कि.मी. की दूरी पर बंधड़ी नामका गाँव है । वहाँ खेतीबाई नाम की अत्यंत धर्मचुस्त सुश्राविका रहती थीं । उनकी जन्मभूमि तो मनफरा गाँवमे थी, मगर उनका विवाह बंधड़ी नामके छोटे से गाँव में हुआ था, जहाँ एक भी जिनमंदिर नहीं था ।
पूर्व जन्म के धर्म संस्कारों की विरासत को साथ में लेकर जन्मी हुई खेतीबाई को जिनपूजा के बिना कैसे चलता भला ? इसलिए वे हररोज बस के द्वारा १२ कि.मी. की दूरी पर स्थित भचाउ शहर में जाकर उल्लासपूर्वक जिनपूजा करती थीं । प्रभुभक्तिमें इतनी एकतान हो जाती थीं कि कई बार समय का भी ख्याल नहीं रहता था। दोपहर को १ बजे घर वापस लौटकर स्वयं रसोई बनाकर बादमें आयंबिल करती थीं ।... कैसी अद्भुत होगी उनकी प्रभु के साथ प्रीति !
घर के पास में ही जिनालय होते हुए भी नियमित जिनपूजा या प्रभुदर्शन की भी उपेक्षा करनेवाले भाग्यशाली खेतीबाई की प्रभुभक्ति की मस्ती को कैसे समझ पायेंगे !
खेतीबाई के हय में जीवदया के भाव ऐसे आत्मसात् हो गये थे कि संयोगवशात् करीब ५० बार मुंबई जाने के प्रसंग उपस्थित हुए थे, तब प्रत्येक बार अठ्ठम तप के पच्चक्खाण लेकर ही मुंबई में जातीं ताकि संडाश का उपयोग करना ही नही पड़े ! तीन दिनों में वे मुंबई से अचूक वापस लौट आती थीं ।
ज्ञानरूचि भी ऐसी अपूर्व कोटिकी थी कि हररोज ८ सामायिक करके भक्तामर स्तोत्र रटती थीं । ज्ञानावरणीय कर्म के उदयसे ८ दिन और ६८ सामायिक में १ श्लोक मुश्किल से कंठस्थ होता था । फिर भी अरति किये बिना पुरुषार्थ चालु रखा और भक्तामर एवं कल्याणमंदिर स्तोत्र कंठस्थ करके ही रहीं !