________________
३९४
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ आदि दीर्ध तपश्चर्याएँ भी की हैं । १३ साल से हररोज पंचपरमेष्ठी भगवंतों को १०८ खमासमण पूर्वक वंदना करती हैं । १० साल की उम्रसे लेकर आज तक रात्रिभोजन का त्याग है । प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अचूक चौविहार का पच्चक्खाण करती हैं । लगातार ६ महिनों तक आयंबिल किये हैं । २५ बार १० पच्चक्खाण तप किया है । उपवास के दिन ३ प्रहर दिन व्यतीत होने के बाद ही पानी पीती हैं । पिछले ७ साल से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का स्वीकार किया है । उनके पति भी उनको तप-जप आदि धर्मकार्यों में अच्छा सहयोग देते हैं ।
उपर्युक्त प्रकार की अप्रमत्त आराधना के प्रभाव से मैनाबाई की आत्मामें अमुक प्रकार की लब्धि एवं आँखों में तप-जप का अपूर्व तेज प्रकट हुआ है । अनेक बिमार व्यक्तियों को उन्होंने नवकार महामंत्र के स्मरणपूर्वक हस्तस्पर्श से नीरोगी बनाये हैं ।
एक बार उनके पति उपर से नीचे गिर गये थे । जोरदार चोट . लगी थी, तब भी उनको दवाखाने में ले जाने के बजाय नवकार महामंत्र के प्रभाव से ही ठीक किया था । तपश्चर्या के दौरान वे किसी की भी सेवा स्वीकार नहीं करतीं । अप्रमत्तभाव से ज्ञान-ध्यान में लीन रहती हैं । इनके परिवार के सभी सदस्यों में भी अच्छे धार्मिक संस्कार दृष्टिगोचर होते हैं। मैनाबाई की अप्रमत्त आराधना की भूरिश: हार्दिक अनुमोदना । - पत्ता : मैनाबाई कचरदास चोरडिया
मु. पो. येरवड़ा, जि. पूना (महाराष्ट्र)
१०८ अट्ठाई आदि तपश्चर्या के आराधक महातपस्विनी कमलाबहन घेवचंदजी कटारिया
मुंबई-खारमें रहती हुई सुश्राविका श्री कमलाबहन १०८ अठ्ठम तप की आराधना कर रही थीं । संघमें जिनालय का खातमुहूर्त करवाने का प्रसंग उपस्थित हुआ तब कार्यकर्ताओं को भावना हुई कि ऐसी महान