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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
३८७ (१७) चारित्र न ले सकें तब तक कुछ वस्तुओंका त्याग है ।
२ साल पहले शंखेश्वर तीर्थ में आयोजित अनुमोदना समारोह में तपस्वी सुश्राविका श्री कंचनबहन पधारी थीं तब करीब ३ महिनों से वे लगातार अठाई के पारणे अढ़ाई कर रही थीं!
तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. 22 के सामने ।
कंचनबहन की तपश्चर्या, सेवावृत्ति, आदि की भूरिशः हार्दिक अनुमोदना ।
पत्ता : कंचनबहन गणेशमलजी अमीचंदजी लामगोता नियमा टेरेसा, वर्धमान ज्वेलर्स के उपर, डॉ. आंबेडकर रोड, परेल मुंबई-४०००१२. फोन : ४१३७८६२ निवास
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१ उपवास स लकर क्रमशः उपवास से कुल ४८ वर्षातप करनेवाली महातपस्विनी
सुश्राविका सरस्वतीबहन कांतिलाल वि.सं. २०२१ में पू. मुनिराज श्री कलहंसविजयजी म.सा. (अध्यात्मयोगी प.पू.आ.भ. श्री विजयकलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य) आदि का चातुर्मास राधनपुर शहर (जि. बनासकांठा-गुजरात) में था । वहाँ एक महातपस्वी सरस्वतीबहन कांतिलाल नामकी सुश्राविका रहती थी। करीब २० साल के विवाह जीवन के बाद वैधव्य को प्राप्त इस सुश्राविका ने अपने जीवन को तपोमय बना दिया था। उन्होंने कभी २ दिन लगातार भोजन नहीं किया था !
एक दिन वे व्यवसाय के समय से पहले उपाश्रय में आयीं । गुरुवंदन करके एक साथ १६ उपवास का पच्चक्खाण लिया ! १६ उपवास शांति से पूर्ण हुए । १७ वे दिन नवकारसी का समय होने पर मुनिवर प्रतीक्षा करते थे कि पारणा करने से पहले गौचरी का लाभ देने की विज्ञप्ति करने के लिए सरस्वतीबहन आयेंगी, मगर वे तो व्याख्यान के समयमें आयीं और साड्डपोरिसी एकासन का पच्चक्खाण लिया। उसके साथ अभिग्रह पच्चक्खाण भी लिया ।