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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
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उपरोक्त ३ बुजुर्गों के आशीर्वाद के प्रभाव से कंचनबहन ने अपने जीवन में निम्नोक्त प्रकार से आराधनाएँ की हैं ।
(१) सात बार विविध छ'री' पालक पदयात्रा संघों में अठ्ठम के पारणे अट्टम के द्वारा पदयात्रापूर्वक तीर्थयात्राएँ की हैं। तीसरा उपवास हो या पारणे का दिन हो मगर उन्होंने कभी वाहन का उपयोग नहीं किया !...
(२) ४ मासक्षमण किये । उनमें से २ मासक्षमण तो छ'री' पालक संघ में किये । उसमें भी २० मासक्षमण तक पैदल चलकर ही यात्राएँ कीं । बाद में सकल संघ के अति आग्रह से पूजा के वस्त्र पहनकर, प्रभुजी को लेकर वे प्रभुजी के रथ में बैठती थीं लेकिन किसी भी यांत्रिक वाहनों में नहीं बैठती थीं
(३) १४ वर्षीतप किये ।
(४) अठ्ठाई एवं २४० अट्टम किये हैं ।
(५) दो बार सिद्धि तप ।
(६) दो बार श्रेणि तप ।
(७) चार बार समवसरण तप ।
(८) दो बार भद्रतप ।
(९) एक बार चत्तारि अठ्ठ दश दोय तप ।
(१०) ४ बार १६ उपवास... ५ बार १५ उपवास... ३ बार १७ उपवास (११) बीस स्थानक तप ।
(१२) तीन उपधान ।
(१३) ३६ साल की उम्र में सजोड़े ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार किया है । संतान में केवल एक ही पुत्र बाबुलालभाई हैं ।
(१४) हररोज उभयकाल प्रतिक्रमण, जिनपूजा आदि ।
(१५) प्रतिदिन सामायिक लेकर ५ पक्की नवकारवाली का जप | एक से अधिक बार नवलाख नवकार जप ।
(१६) २२ साल से वे कभी खुल्ले मुँह नहीं रही हैं अर्थात् कम से कम बिआसन का पच्चक्खाण होता ही है ।