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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
३४३
भी करना हो उनकी बात तू जाने लेकिन मुझे कुलदेवी की पूजा करने का आग्रह मत करना । मेरे लिए तो वंदनीय - नमनीय-पूजनीयआराधनीय देवाधिदेव अरिहंत परमात्मा ही हैं। मुझे अन्य देव-देवीयों की आराधना में कोई दिलचस्पी नहीं है ।'
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माँ ने पुत्र की बात सुन ली, मगर उसी रात उस बेटे को बुखार आ गया । ‘कुलदेवी को नैवेद्य नहीं चढाया इसलिए बुखार आ गया' ऐसा किसीने कह दिया । उसे सुनकर वरराजा की माँ भी उसे कुलदेवी को नैवेद्य चढाने के लिए आग्रह करने लगी । पुत्र के लिए 'व्याघ्र - नदी - न्याय' जैसी बात हो गयी । उसने अपनी माँ को कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया लेकिन बुखार के निवारण के लिए वैद्यकीय उपचार बढ़ा दिये । प्रातः होते ही उसका बुखार बिलकुल उतर गया, तब उसने विनम्रभाव से अपनी माँ को नमस्कार करके कहा कि 'हमको शत्रुंजय महातीर्थ की यात्रा करने के लिए पालिताना जाने की इजाजत दो ।
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'यकायक शेत्रुंजय की यात्रा कै से याद आ गयी ? माँ ने पूछा । 'माँ ! रात को मुझे बुखार आ गया था, इस प्रसंग को कुलदेवी के नैवेद्य के साथ जोड़कर घरमें कई तरह की बातें होती थीं, मगर मुझे कुलदेवी के नैवद्य की विधि में बैठना नही था और इसके लिए बुखार का उतर जाना जरूरी था । इसलिए मैंने रातको संकलप किया था कि अगर बुखार उतर जायेगा तो हम दोनों श्री शेत्रुंजय महातीर्थ की यात्रा करने के लिए तुरंत जायेंगे। अब बुखार उतर गया है इसलिए हमको शेत्रुंजय जाना जरूरी है' सुपुत्रने विनम्रभावसे अपनी माँ को समझाया ! कुलदेवी के नैवेद्य की बात से उसे मनचाही मुक्ति मिल गयी । श्री शेत्रुंजय महातीर्थ की यात्रा दोनोंने अत्यंत हर्षोल्लास पूर्वक की ।
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(३)
उपरोक्त युवक के एक पुत्र को दराद ( चमड़ी का रोग) हुआ था । अनेक प्रकार के वैद्यकीय उपचारों के बावजूद भी यह रोग दूर नहीं हुआ । युवक की पत्नी को किसीने पडौश के गाँव के पीर के पास ले जाने की बात कहीं । लेकिन अरिहंत परमात्मा के प्रति अनन्य समर्पण भाववाले