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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ इस बात पर मैं और मेरे भाई साहब अपनी स्मृति को कुरेदने लगे और याद करने लगे - क्या ऐसा हुआ था ? यह सही था कि अहमदाबाद सम्मेलन के बाद हमारा परिवार सिद्धाचल गया था । उस समय हम सब ६ कोस की यात्रा में गये थे और फाल्गुन सुदी १३ को (मार्च महीनेमें) हमें मण्डप पर बैठे हुए एक तोते की और इंगित करते हुए हमारी माँ का यह कथन याद आया कि तोता सुन्दर है । पर हमें नहीं मालूम था कि माँ ने तोते से बात की थी । फलतः जाँच और आगे बढ़ी -
प्रश्न - इस निमंत्रण के बाद तुम और कितने जिये ? उत्तर - लगभग १२ महिने । प्रश्न - क्या तुम्हें मृत्यु के समय यह बात याद आयी थी ?
उत्तर - हाँ । . निमंत्रण का समय, तोते की मृत्यु और पुनर्जन्म का समय और इस बातचीत के समय बालक की अवस्था आदि बातों का गणित से हिसाब लगाया गया । यह सब अहमदाबाद के सम्मेलन के समय से मेल खाता था।
मुनि श्री मोहनविजयजी को इस गहरी जाँच के बाद संतोष हो गया और उन्होंने मुनिश्री हंसविजयजी और मुनिश्री कपूरविजयजी द्वारा व्यक्त अभिमत से सहमति प्रकट की और अपना निर्णय भी वैसा ही दिया।
बालक के संबंधमें जो कुछ देखा है और जो अनुभव किया है उसका यह संक्षिप्त वृत्तांत है । अगर यह पाठकों के लिए उपयोगी एवं ज्ञानवर्द्धक हो तो मुझे प्रसन्नता होगी ।