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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
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आपको भूख लग आई । मुझे तो भूख नहीं लगी है । मेरा पेट को इस बात से ही भर गया है कि अपने इस जन्म में इतनी जल्दी आदीश्वर भगवान की मैं पूजा कर सका । मैंने बातचीत का रुख बदल दिया और कहा 'मेरे साथ डोली में चलो ।' लेकिन वह पैदल चलने के व्रत पर अडिग था । आचार्य (तब मुनि) अजितसागरजी ने बालक को मेरे साथ चले जाने के लिए राजी करना चाहा । पर वह राजी नहीं हुआ और पैदल ही पहाड़ से उतरा । रास्ते में अनेक लोगों ने उससे पानी पीने को कहा, पर उसने इन्कार कर दिया । बल्कि उसने यात्रियों को झिड़का और कहा कि इस पवित्र पहाड़ पर पानी पीने का रिवाज बिल्कुल छोड़ देना चाहिए। उसने दोपहर ढाई बजे धर्मशाला में पहुँच कर भोजन किया । हजारों यात्री बालक से मिले
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वढवाण की भाँति पालीताना में भी बालक से प्रतिदिन मिलने के लिए बड़ी संख्या में यात्री आते थे और बालक की वह कड़ी परीक्षा संध्या को देर तक चलती थी । सेठ गिरधरभाई आनन्दजी, भावनगर के सेठ अमरचन्द घेलाभाई तथा अन्य कई लोग बालक से अनेक प्रश्न करते थे और उन्हें संतोषजनक उत्तर प्राप्त होता था ।
सिद्धवड़ की यात्रा
पालीताना के यात्रियों ने सिद्धवड़ में उसका घोंसला देखने पर जोर दिया । तब एक दिन निश्चित किया गया और लगभग एक हजार यात्री बालक के पीछे ही हो लिये । उसने उन्हें वृक्ष की वह शाखा दिखाई, जहाँ तोते का घोसला था और लोग संतुष्ट हुए ।
पालीताना में ३१ दिन का निवास
पालीताना की ३१ दिन की यात्रा में इस ४ वर्ष के बालक ने प्रतिदिन पैदल यात्रा की । इस प्रकार पहाड़ पर चढ़ने-उतरने में लगभग ८ मील का फासला तब करना पड़ता था । वह बिना अन्न-जल ग्रहण किये हुए पहाड़ पर चढता था और तीसरे प्रहर पहाड़ से उतर कर ही
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