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________________ समूह बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २ बड़े लोग इस समस्या का समाधान निकालते उसके पहले ही में से एक दस वर्षीय बालिका चुपचाप निकलकर वृद्ध महिला के पास पहुँची और उसकी गोद में बैठकर मुस्कराते हुए बोली " अपने रिवाज के अनुसार मेरी भाभी के होने वाले बच्चे के जन्म के अवसर के लिए तैयार की गई सोने की सीढ़ी पर आपके चढ़ने के बाद फिर वह दान में दे दी जानी चाहिए। संबंधितों और मित्रों को भोजन कराना चाहिए और जाति में मिठाई बौंटनी चाहिए, मन्दिरों और यात्रा के स्थानों पर भेंट चढानी चाहिए और पूजा करनी चाहिए । नवजात शिशु का नाम पवित्र शत्रुंजय तीर्थ 'सिद्धाचलजी' के नाम पर रखना चाहिए । जहाँ हम लोग हाल ही में यात्रा को गये थे ।" सब परिवार जन इस प्रस्ताव को सुनकर प्रसन्न हुए । मेरी माताजी ने भी इसे स्वीकार कर लिया । मैने आदर के साथ अपनी माँ को सुझाव दिया कि उनके बाद भी उनका प्रिय नाम सदा हमारी स्मृति में ताजा रहे इसलिए "हम सिद्धाचलजी के पहले भाग 'सिद्ध' को पहले रखें और उसके साथ आपका नाम ( माताजी का नाम राजकुंवर था) जोड़ दें । इस प्रकार जब बालक जन्म ले तो उसका नाम 'सिद्धराज कुमार' रहे ।" उन्होंने इसकी स्वीकृति दे दी । ३२६ सिद्धराज कुमार का जन्म फरवरी, १९०९ में सिद्धराज कुमार का जन्म हुआ । जिससे पूज्य माताजी तथा परिवार के सभी लोगों को अत्यधिक प्रसन्नता हुई । उस छोटी लड़की के द्वारा सुझाये गये सभी सामाजिक रीति-रिवाज तथा खुशियाँ दादीजी के द्वारा पूरी की गईं । रोता हुआ बालक चुप हो गया ! बम्बई संघ की लालवाग की बैठक में सर्व सम्मति से जो प्रस्ताव स्वीकार किया गया था उसके अनुसार मैं उस समय कलकत्ते में समेतशिखर के मुकद्दमें में लगा हुआ था । बालक के जन्म के शुभ समाचार पाकर मैं शीघ्र जयपुर आ गया । संभवतः जन्म के १०वें या ११ वें दिन मैंने उसे अपनी गोदमें लिया । तब अचानक ही वह जोर जोर से रोने चिल्लाने लगा । हम लोगों ने हर सम्भव प्रयास उसे शांत करने
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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