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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
३२५ दृष्टांतों को पढकर अपनी मान्यता पर तटस्थ रूप से पुनर्विचारणा करें यही शुभापेक्षा। हाथ कंगन को आरसी की क्या जरूरत है ?
जो सम्प्रदाय मूर्तिपूजा में जड़ता या पाप मानता है वह भी ऐसे दृष्टांतों को पढकर गंभीरता से सम्यक् चिंतन करके अपनी गल्ती को सुधार ले यही मंगल भावना ।
नियति के अनुसार श्री सिद्धराजजी ढड्डा आज कई वर्षों से महात्मा गांधीजी, विनोबा भावे एवं जयप्रकाश नारायण के विचारों से प्रभावित होकर सर्वोदय नेता के रूप में निःस्वार्थभाव से सामाजिक कार्यों को करते हुए कर्मयोगी जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं । ९० सालकी उम्रमें भी वे स्वस्थ हैं।
- संपादक
पूर्वजन्म की स्मृतियाँ
लगभग ३० वर्ष पहले की वात है । मेरी माताजी अपने प्रपौत्र के जन्मोत्सव के लिए अनेक योजनाएँ बना रही थीं । लेकिन उनकी सारी आकांक्षाएँ उस समय प्रपौत्री पैदा होने के कारण व्यर्थ हो गईं। उनके मन में यह तीव्र आकांक्षा थी कि मरने के पहले वे अपने प्रपौत्र का मुंह देख लें। उस घटना के ४ वर्ष के पश्चात् उनकी आशा की किरण प्रकट हुई ।
जन्म के पहले बालक का नामकरण
पर्दूषण पर्व के पवित्र सप्ताह में उन्होंने एक दिन सब परिवारजनों को एकत्र किया और इस प्रकार सम्बोधित किया "तुम सब जानते हो कि मेरे मन में चार वर्ष पहले सोने की सीढी चढने की जो तीव्र आकांक्षा थी, वह प्रपौत्री के पैदा होने के कारण निष्फल रह गयी थी । उसके पश्चात् में सदा प्रपौत्र के जन्म के सम्बन्ध में ईश्वर से प्रार्थना करती रही हूँ और मुझे विश्वास है कि अब चार पाँच महीनों में मेरी प्रार्थना सफल हो जायगी । यदि मेरे प्रपौत्र का जन्म हो जाय तो उसके नाम के सम्बन्ध में आप लोगों का विचार जानकर मुझे प्रसन्नता होगी ।"