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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
हररोज प्रत्येक मुनिवरों को विधिपूर्वक वंदन करते थे । पदस्थ मुनिवरों को हररोज दो बार एवं अपने परमोपकारी आचार्य भगवंत को ३ बार वंदन करते थे । किसी भी साधु को वंदन करने में 1 चूक जाते तो दूसरे दिन उपवास करते थे ।
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वि. सं. २०१३ में ४० वर्ष की उम्र में इस दंपती ने ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया था । उसके बाद अगर अपनी छोटी बेटी का स्पर्श हो जाय तो आयंबिल करते थे ।
वि. सं. २०१९ में ज्येष्ठ सुदि १० के दिन अपने २ सुपुत्र और १ सुपुत्री एवं धर्मपत्नी के साथ दीक्षा ली एवं धनजीभाई में से मुनिराज श्री भद्रशीलविजयजी बने । पुत्र मुनिवर आज प. पू. आ. श्री गुणशीलसूरिजी म.सा. एवं मुनिराज श्री कुलशीलविजयजी के रूपमें अनुमोदनीय आराधना एवं शासन प्रभावना कर रहे हैं ।
वि. सं. २०२५ में मुनिराज श्री भद्रशीलविजयजीने वर्षीतप किया । उसमें भी प्रारंभ में चौविहार छठ्ठ तप के पारणे में भी एकाशन ही करते थे । चालु वर्षीतप में केवल ९ दिनों में तलाजा तीर्थ की ९९ यात्राएँ विधिपूर्वक पूर्ण कीं ।
प्रभुभक्ति ऐसी भावपूर्वक करते थे कि भोजन करना भी भूल जाते थे । पालिताना में बिराजमान प्रत्येक प्रभुजी को ३ ३ खमासमण देकर वंदना की है। धातु के छोटे से जिनबिम्ब को भी ३ खमासमण देकर वंदना करते थे । हररोज त्रिकाल देववंदन करते थे डिग्री बुखार में भी देववंदन किये बिना पानी भी नहीं पीते थे । गुरु - भक्ति भी ऐसी अप्रतिम थी कि ५ डिग्री बुखार में भी आचार्य भगवंत की सेवा - भक्ति ( पैर दबाना, स्थंडिल परठवना इत्यादि) स्वयं ही करते थे
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क्रियाशुद्धि भी ऐसी अनुमोदनीय थी कि १७ संडाशा ( शरीर के अवयवों के जोड़) की प्रमार्जना पूर्वक खड़े होकर अप्रमत्तता से खमासमण और वांदणा देकर प्रतिक्रमण आदि करते थे ।