SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० । बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ भोजन भी इसी कारण से दोपहर को ही रखा गया । पानी को ठंडा करने के लिए उसने जमीन में गड्ढे बनवाकर उनमें काली मिट्टी से बनी हुई नव कोठियाँ रखवायीं । उनमें पानी भरवाकर ७ दिन तक रखा । हररोज उस पानी को छाना जाता था । शादी के प्रसंग में बर्फ का उपयोग किये बिना भी फिज जैसा ठंडा पानी पीकर सभी को अत्यंत आश्चर्य हुआ । सत्कार समारंभ इत्यादि भी इस पापभीरु युवक ने दिनके समय में ही रखवाया था । लेकिन बिदाई का मुहूर्त रात्रि के समय में ही था । सामाजिक रीति-रिवाज के मुताबिक उस वक्त सभी को चाय पीलानी पड़े ऐसी परिस्थिति थी लेकिन युवक ने अपने पिताजी को स्पष्ट कह दिया कि, 'हमें रात को किसी को भी चाय नहीं पीलानी है ।' फिर भी लोकरीति के कारण पिताजी यह पाप न करें इसलिए उस युवकने अपने मित्रों के साथ मिलकर एक योजना बना ली थी । बिदाई के समय में ट्रे में चाय लायी जा रही थी तब उसके मित्रोंने दूर से ही उसे देखकर वहाँ जाकर चाय जप्त कर के धरती में डाल दी । शादी करते हुए युवक की भावना कितनी उत्तम ! आप भी अपने मन को दृढ करके छोटे मोटे बहानों से अभक्ष्य आदि भयंकर पापों से बचें एवं दूसरों को भी बचायें यही मंगल भावना । | 'कम्मे सूरा सो घम्मे सूरा' चेइन स्मोकर १४५ धनजीभाई बने उत्कृष्ट आराधक पू. पंन्यास श्री भद्रशीलविजयजी म.सा. एक सुभाषित में कहा गया है कि 'सतां संगो हि भेषजम्' अर्थात् सत्पुरुषों का संग भवरोग का निवारण करने के लिए उत्तम औषध है । ___ संत तुलसीदासने भी कहा है कि 'एक घड़ी धी घड़ी, आधी में पुनि आध । तुलसी संगत साधु की, कटे कोटि अपराध' । उपरोक्त सुभाषितों की यथार्थता हमें धनजीभाई के निम्नोक्त दृष्टांतमें देखने मिलेगी ।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy