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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
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शादी के दिन रात्रिभोजन त्याग ।
एक अजीब लग्नोत्सव की बात ध्यान से पढ । के पिताओंने निर्णय किया कि हम रात्रिभोजन नहीं करवायेंगे । कन्या के पिताकी ओर से शादी के बाद शामको अनेक मेहमानों के साथ दामाद को भोजन करवानेका था । शादी के बाद पति-पत्नी प. पू. आचार्य भगवंत को वंदन करने के लिए गये थे । ट्राफिक इत्यादि कारणों से वापस लौटने में बहुत देर हो गयी । सूर्यास्त होने में केवल ५ मिनिट की ही देर थी । कन्या के पिता उलझन में पड गये कि यदि भोजन का निषेध करेंगे तो दामाद नाराज हो जायेंगे तो जीवन पर्यंत मेरी बेटी को परेशान करेंगे । अब क्या किया जाय ?
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लेकिन जैसे ही पति-पत्नी भोजन के पंडाल में पधारे कि वर के पिताने उद्घोषणा की कि, 'सूर्यास्त हो रहा है इसलिए रसोड़ा बंद किया जाय' । कन्या के पिता की उलझन दूर हो गयी । रात्रिभोजन के पाप से सभी बच गये । शादी के दिन भी सभी को रात्रिभोजन के पाप से ऐसे धर्मप्रेमी श्रावकरन बचाते हैं । तो हे प्रिय पाठक । आप भी मन को दृढ करके नरकदायक रात्रिभोजन के पाप से अवश्य बचने का संकल्प करें।
शादी के प्रसंग में सभी पापों का त्याग !
शादी करते हुए एक युवक की पापभीरुता को आप हाथ जोड़कर पढें । अपनी शादी के प्रसंग में पिताजी आदि के समक्ष उसने स्पष्टता की कि, 'इस प्रसंगमें रात्रिभोजन, बर्फ और अन्य किसी भी प्रकार के अभक्ष्य पदार्थों का उपयोग नहीं होना चाहिए ।' शादी के निमित्त का