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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
प्रतिवर्ष सैंकड़ों बकरों की सामूहिक बलि प्रथा को बंद करानेवाले श्राद्धवर्य सुमतिभाई राजाराम शाह
आज जब चारों ओर हिंसा का भयंकर तांडव नृत्य दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है तब उसको रोकने के लिए अत्यंत जरूरत है गाँव गाँव में से सुश्रावक श्री सुमतिभाई राजाराम शाह जैसे नररत्नों की । तो चलो हम सुमतिभाई का रोमहर्षक दृष्टांत पढें ।
महाराष्ट्र में कोल्हापुर जिले के कागल तहसील में लिंगनूर (कापसी) नामका एक छोटा सा गाँव है । इस गाँव के पिछड़े हुए लोग अज्ञानता के कारण अंधश्रद्धा से प्रेरित होकर प्रतिवर्ष ३ बार अम्बिका देवी की यात्रा के समय में ३०० से ४०० बकरों की बलि चढाते थे । इन लोगों की ऐसी मान्यता थी कि इस तरह बकरों का बलि देने से देवी प्रसन्न होती है और फसल बहुत होती है। किसी प्रकारके रोग नहीं होते । बकरों का माँस खाने के लिए वे अपने रिश्तेदारों को निमंत्रण देते थे । शराब और माँसकी महेफिल जमती थी । ऐसे अकार्य हर साल में ३ बार सामूहिक रूपसे होते थे । यह गाँव महाराष्ट्र और कर्णाटक की सीमा पर आया हुआ हैं ।
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लिंगनूर से थोडी दूरी पर कर्णाटक राज्य के निपाणी. गाँव में सुमतिभाई राजाराम शाह नाम के अत्यंत जीवदयाप्रेमी, धर्मनिष्ठ सुश्रावक रहते थे । (आजसे करीब २ साल पूर्व में ही उनका स्वर्गवास हुआ है ।) धर्म के नाम पर चलते हुए इस सामूहिक हत्याकांडसे वे अत्यंत खिन्न थे । पिछले १५ सालों से वे इस हत्याकांड को बंद कराने के लिए कई प्रयत्न करते थे मगर सफलता नहीं मिलती थी ।
फिरसे दि. २६-२-९२ के दिन इस यात्रा और बलिप्रथा का दिन आ रहा था तब सुमतिभाई ने दृढ निश्चय किया कि इस बार तो किसी भी हालत में इस हत्याकांड को रोकना ही है । वे भगवान श्री चंद्रप्रभस्वामी के जिनालयमें गये । प्रभु के चरणों के पास मस्तक झुकाकर