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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ कहा कि "महाजन की बात अत्यंत उचित है, मगर गाँवमें सूअरों की संख्या बहुत बढ गयी है । लोगोंकी बारबार शिकायत आती है, इसलिए नगरपालिका ने ही सूअरों को पकड़नेवाले आदमियों को बुलवाया है ।"
__"लेकिन साहब ! इतने सारे निर्दोष जीवों को हमारी आँखों के सामने यमदूतों के हाथमें जाते हुए हम कैसे बरदाश्त कर सकें ? आप इसका दूसरा कोई रास्ता निकालें तो अच्छा" श्रावकोंने कहा । - "यदि आप इन सूअरों को गाँव से हमेशा के लिए दूर भेज सको तो हम आपको सौंपने के लिए तैयार हैं" ओफिसरने कहा ।
आपस में विचार विनिमय करके श्रावक सूअरों को स्वीकारने के लिए तैयार हो गये । नगरपालिका के अधिकारी एवं पुलिस कमीश्नर आदि की सहायता से उन्होंने १३०० जितने सूअरों को कसाई जैसे लोगों के पास से कब्जा ले लिया । आर्थिक रूप से उन लोगों को भी संतुष्ट किया. गया । बादमें १० मजदूरों द्वारा उन सभी सूअरों को ट्रकों में भरकर गाँव नगर से दूर दूर अरावली की घाटियों में अग्रणी श्रावक स्वयं जाकर छोड़ आये जिससे उनको फिर से कोई पकड़ नहीं सके और वहाँ पानी के झरने होने से उनको आहार पानी भी मिल सके।
उसके बाद बेचराजी और कटोसण रोड़ के लोगों को इस बात की खबर मिलने पर उनकी विज्ञप्ति से बेचराजी से १२० और कटोसण रोड़ से ६५ सूअरों को एवं अन्य भी जाल में फंसे हुए १४ सूअरों को छुड़ाकर अरावली की घाटियों में छोड़कर बचाया । इस पुण्य कार्य में उन्होंने १३ हजार रूपयों का सद्व्यय प्रसन्नता से किया और समय एवं जात मेहनत का बहुत भोग दिया । पू. पंन्यासजी महाराज को यह समाचार मिलते ही उन्होंने अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त करके उन श्रावकको बहुत बहुत शुभाशीर्वाद दिये ।
इन जीवदयाप्रेमी सुश्रावकश्री का नाम "बाबुभाई कटोसणवाले" था। "Live and let live''अर्थात् 'जीओ और जीने दो' इस लौकिक सूत्र से भी आगे बढकर "Die and let live" अर्थात् 'जरूरत पड़ने पर स्वयं का बलिदान देकर भी दूसरे जीवो को बचाओ, स्वयं प्रसन्नता से कष्ट सहन