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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ ____२७९ (१४) मुंबई घाटकोपर में ऋषभकुमार ने १० साल की उम्र में मुनिराज श्री कल्याणबोधिविजयजी म.सा. द्वारा सुन सुनकर केवल ३ घंटों में ४४ श्लोकका संस्कृत भक्तामर स्तोत्र कंठस्थ करके आत्मा की अचिंत्य शक्ति का सभी को परिचय कराकर आनंदविभोर बना दिया था। विशेष आश्चर्य की बात तो यह है कि यह बालक अंग्रेजी माध्यममें पढ़ता है, अत: उसे गुजराती ठीक से पढने भी नहीं आती है फिर भी सुन-सुनकर विविध मुनिराजों की निश्रामें रत्नाकर पचीसी (२५ गाथा), अरिहंत वंदनावलि (४९ श्लोक) और सकलाईत स्तोत्र का गुजराती में पद्यानुवाद (३४ श्लोक) भी केवल २ - २ घंटों के अंदर ही कंठस्थ कर लिया था । श्री संघने एवं अन्य अनेक संस्थाओंने ऋषभकुमार का बहुमान किया था। हाल वह ११वीं कक्षामें पढता है । स्कूल में हमेशा प्रथम क्रमांक में उत्तीर्ण होता है । धार्मिक ५ कक्षा की परीक्षाओं में प्रथम वर्ग में उत्तीर्ण हुआ है । भारतीय विद्याभवन द्वारा ली गयी संस्कृत की परीक्षामें भी प्रथम क्रमांक में उत्तीर्ण हुआ है । ऋषभकुमार की तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. 14 के सामने । पता : ऋषभकुमार बिपीनभाई मेहता 'पंकज' बी-ब्लोक नं. ८०, होटल एरवेझ के पास, एल. बी. शास्त्री मार्ग, घाटकोपर मुंबई ४०००८६, फोन : ५१४९०७८ आजन्म चौविहार करते। हुए बालश्रावक नवसारी (गुजरात) में उत्पन्न हुआ वह बालक कितना पुण्यशाली होगा कि उसके परिवार में कोई भी रात्रिभोजन नहीं करता । बच्चे की माँ को विचार आया कि, 'मेरे बेटे को जन्म से लेकर रात्रिभोजन के पाप : से मुक्त रखना है,' अतः वह उसे दूध भी केवल दिन को ही पिलाती
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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