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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
२६९
पता : पंडित श्री मोतीचंदभाई डुंगरजी
मु. पो. समी, जि. महेसाणा (उ. गुजरात) पिन : ३८४२८५ फोन : ०२७३३ - ४४४०५, ४४४६२, ४४३११
(२) महेसाणा में श्री यशोविजयजी जैन पाठशाला के मुख्य अध्यापक पंडित श्री पुखराजभाई भी बाल्य वयमें ही प्रज्ञाचक्षु बने थे । उन्होंने भी उत्साह पूर्वक ६ कर्मग्रंथ कम्मपयड़ी - पंचसंग्रह आदि का ऐसा तलस्पर्शी अध्ययन किया था । कई आचार्य भगवंतादि साधु-साध्वीजी भगवंतों को भी जब कर्मग्रंथ के विषय में किसी दुर्गम प्रश्न का समाधान नहीं होता तब वे पंडितवर्य श्री पुखराजभाई को प्रश्न पूछते थे और प्रत्युत्तर पाकर संतुष्ट होते थे । वे भी बाल ब्रह्मचारी और उत्तम आराधक थे । ४ साल पूर्व ही उनका स्वर्गवास हुआ है ।
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(३) कच्छ - भुजपुर में पंडितजी आणंदजीभाई भी बाल्यवय में प्रज्ञाचक्षु बने थे । वे भी संस्कृत व्याकरण और कर्मग्रंथादि के अर्थ बहुत अच्छी तरह से पढाते थे । भुजपुर के योगनिष्ठा तत्त्वज्ञा पू. सा. श्री गुणोदया श्रीजी म.सा. आदि अनेक जिज्ञासुओं को उन्होंने बहुत अच्छी तरह
अध्ययन कराया था ।
(४) कच्छ- नाना रतडीआ गाँव के सुश्रावक श्री मीठुभाई वेलजी गडा (उ. व. ६५) केवल २ साल की छोटी उम्र में प्रज्ञाचक्षु हुए थे। उन्होंने १४ साल की उम्र में वर्षीतप के साथ धार्मिक अध्ययन का भी प्रारंभ किया था । आज उनको पाँच प्रतिक्रमण, स्नात्रपूजा पं. श्रीवीरविजयजी कृत बड़ी पूजाएँ, अनेक चतुर्दालिक और श्री आनंदघनजी चौबीसी, उपा. श्री यशोविजयजी चौबीसी श्री ज्ञानविमलसूरिजी चौबीसी आदि करीब २५० जितने स्तवन कंठस्थ हैं । अधिकांश धार्मिक अध्ययन उन्होंने अचलगच्छाधिपति प.पू. आ. भ. श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की संसार पक्षमें चाचा की बेटी सुश्राविका श्री हीरबाई के पास से सुन सुनकर किया है । हररोज जिनपूजा, प्रतिक्रमण, नवकारसी एवं चौविहार करते हैं ।
७ वर्षीतप २११ अट्ठम, नवपदजी की ४५ ओलियाँ, बीसस्थानक तप वर्धमान तप, २८ तीर्थंकर के एकाशन, ज्ञान पंचमी, १४ पूर्व, अक्षयनिधि, रोहिणी समवसरण आदि अनेकविध तपश्चर्या द्वारा विपुल कर्म निर्जरा की है !