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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
____२५३ पता : कुमारपालभाई वी. शाह श्री वर्धमान सेवा केन्द्र, ३९, कलिकुंड सोसायटी मु. पो. धोलका, जि. अहमदाबाद (गुजरात) पिन : ३८७८१० फोन : ०२७१८-२२२८२-२३९८१
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मुंबई में भी संडाश-बाथरूम के उपयोग को
. टालते हुए अरविंदभाई दोशी
पहले के जमाने में आर्य लोग प्राय: घर का ही भोजन करते थे। होटेल आदि के - बाजार के वासी भोजन से प्रायः दूर ही रहते थे और नीहार के लिए गाँव के बाहर जंगलमें जाते थे । आज कल गाँवों की संस्कृति छिन्न-भिन्न होती जा रही है और गाँव के लोग आजीविका इत्यादि के लिए शहरोंमें जाते हैं । शहरों के माहौल में जीनेवाले लोगों को अब अपने घर का भोजन चाहे कितना भी सात्त्विक और स्वादिष्ट हो मगर वह कम भाता है और होटल आदि का भोजन चाहे कैसा भी वासी और प्रदूषित होने से बीमारी पैदा करनेवाला हो तो भी उसके प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है । और मलत्याग के लिए बाहर जाने के बजाय अपने घर में ही प्रायः रसोड़े के पास में ही रहे हुए संडाश में जाना पड़ता है। ...और स्नान भी बाथरूम में करना पडता है, मगर संडाश-बाथरूमका पानी इत्यादि जिस गटर में से पसार होता है उसमें असंख्य कीड़े, संमूर्छिम मनुष्य इत्यादि की घोर हिंसा होती है उसका ख्याल उनको नहीं होता है ।
लेकिन आज भी ऐसे विरल आराधकरत्न विद्यमान हैं कि जो सत्संग के द्वारा इन बातों को समझकर विवेक पूर्वक जीवन जीते हुए आर्य संस्कृति को जीवंत रख रहे हैं ।
___ मूलतः महुवा बंदरगाह (सौराष्ट्र) के निवासी किन्तु हाल में कुछ वर्षों से मुंबई-बोरीवली में रहते हुए श्रमणोपासक श्री अरविंदभाई दोशी (उ. व. ३९) भी ऐसे ही एक आदर्श युवक हैं ।