________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
२१९ लगभग १० लाख रूपयों के सोने-चांदी के उपकरण प्रभुभक्ति के लिए उन्होंने बनाये हैं । एक्रीलेक के आकर्षक समवसरण में प्रभुजी को बिराजमान करके उत्तम प्रकार के पंचरंगी पुष्पों से ऐसी नयन रम्य अंगरचना बनाते हैं कि हम देखते ही रह जाय । अग्रपूजा के लिए भी ५ प्रकार के उत्तम फल, ५ प्रकार के सच्चे घी से बने हुए नैवेद्य... इत्यादि हररोज ५०० रूपयों के पुष्प-फल-नैवेद्य से वे प्रभुपूजा करते हैं। चांदी के १०८ कलसों से १ घंटे तक प्रभुजी की अभिषेक पूजा करते हैं । हररोज अरिहंत परमात्मा के च्यवन-जन्म-दीक्षा-केवलज्ञान और मोक्ष रूप पंच कल्याणकों की भाव पूर्वक उजवणी करते हैं ।
द्रव्यपूजा उपरोक्त प्रकारसे करने के बाद चैत्यवंदन रूप भावपूजा करते हैं तब हाथमें धूंधरु बाँधकर, स्वयमेव ढोलक बजाते हुए आनंदघनजी महाराज, उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज आदि द्वारा विरचित १० - १२ स्तवन अत्यंत भाव विभोर होकर गाते हैं । इस तरह प्रतिदिन ४-५ घंटे तक जिनालय में प्रभुभक्ति करके बादमें वे घर जाते हैं ।
- कुछ वर्षों से उन्होंने अपने घरमें श्री सीमंधर स्वामी भगवान का छोटा सा लेकिन अत्यंत भव्य गृह मंदिर बनवाया है । जो भव्यात्माएँ वहाँ शुद्ध भावसे प्रभुभक्ति करती हैं उनको विशिष्ट अनुभव भी होते हैं ।
इसके अलावा दोपहर को सामायिक लेकर जैन धर्म के ग्रन्थोंका स्वाध्याय-चिंतन आदि करते हैं ।
कई बार वे अपनी माता पार्वतीबाई को लेकर शांत तीर्थस्थानों में जाते हैं वहाँ १०-१५ दिन रहकर विशेषरूपसे प्रभुभक्ति में लीन हो जाते हैं।
प्रति मास शुक्ल बीज के दिन वे शंखेश्वर महातीर्थमें जाते हैं तब प्रभुजी की अभिषेक पूजा आदि की बोलियाँ हजारों रूपयों का खर्च कर के वे ही बोलते हैं।
बूचड़खानों में होती हुई प्रतिदिन लाखों अबोल प्राणीओं की हिंसा बंद हो या कम हो ऐसे शुभ संकल्प पूर्वक गिरीशभाई ने वि.सं.२०५२ में ज्येष्ठ महिने में शंखेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ में १८ अभिषेक के सभी चढावे