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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
२११ कहे गये हैं, उसमें पाँचवे नंबरमें ऐसे विशिष्ट तपस्वीओं का 'शासन प्रभावक' के रूपमें वर्णन करते हुए उपाध्याय श्री यशोविजयजी म.सा.ने 'समकित सडसठी' सज्झाय में कहा है कि -
" तप गुण ओपे रे रोपे धर्मने, गोपे नवि जिन आण । . आश्रव लोपे रे नवि कोपे कदा, पंचम तपसी ते जाण ॥ धन धन शासन मंडन मुनिवरा"
दि. २८-८-९६ से हीराचंदभाई ने अन्न त्याग करके पानी सहित केवल ९ प्रवाही के उपर जीवन जीनेकी प्रतिज्ञा ली थी । उसमें भी प्रति ६ महिने में १-१ प्रवाही कम करने का संकल्प था । आज वे पानी, छाछ और नारियल का पानी इन तीन प्रवाही का ही उपयोग करते हैं ।
दि. ४ से १० डीसेम्बर १९९८ तक विविध चिकित्सा पध्धतियों के करीब ५०० विशेषज्ञों की वैश्विक कोन्फरन्स का अहमदाबाद में आयोजन हुआ था । उस में हीराचंदभाई ने सूर्य ऊर्जा और उपवास के विषय में अपने वक्तव्य के समापन में उद्दघोषणा की है कि अगर आंतरराष्ट्रीय मान्य चिकित्सकों की टीम वैज्ञानिक पद्धति से परीक्षण करने के लिए तैयार होगी तो वे दि. १-१-२००० से या उससे भी पहले केवल गर्म जल से ४०० या उससे भी अधिक दिनोंके उपवास का प्रारंभ करेंगे!!!... हीराचंदभाई उपवास, विश्वशांति और सूर्यऊर्जा के विषय पर गुजराती, हिन्दी, अंग्रेजी एवं मलयालम भाषा में प्रवचन देते हैं। शंखेश्वर में अनुमोदना समारोहमें हीराचंदभाई भी पधारे थे। उनकी तस्वीर पेज नं. 12 के सामने प्रकाशित की गयी है।
पता : हीराचंदभाई रतनसी माणेक HF2-131-KSHB, Vikashnagar Appartment, Chakkorath Kullam, Calicut (Kerala), Pin : 673006. Ph : 0495-369928