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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २ करते हैं इसलिए अपने विषयमें ऐसा कोई लेख लिखा जाय वह बात जिनको बिल्कुल नापसंद है, यह जानते हुए भी ऐसी उत्तम आत्माओंकी गुण समृद्धिकी आंशिक भी अनुमोदना किये बिना यह किताब बिल्कुल अपूर्ण सी प्रतीत होती है ऐसा मानकर.... और उनके चाहक वर्ग की भावना को लक्ष्यमें रखकर जिनके विषयमें कुछ लिखने के लिए यह लेखिनी तैयार हुई है, ऐसे अध्यात्मनिष्ठ बंधु युगल श्री देवजीभाई और नानजीभाई को याद करते ही इतिहास प्रसिध्ध बंधु युगल वस्तुपाल-तेजपाल और राम-लक्ष्मण की स्मृति सहज रूप से हुए बिना रहती नहीं ।
मूलतः कच्छ-मेराउ गाँव के निवासी उपरोक्त सुश्रावक व्यवसाय के निमित्त से कई वर्षों से कच्छ-गांधीधाममें रहते हैं ।
धर्मनिष्ठ माता मूरीबाई एवं पिताश्री चांपसीभाई पदमसी देढिया की ओर से उदारता, भद्रिकता, धीरता, गंभीरता, नीतिमत्ता, जिनभक्ति, गुरुभक्ति, सार्मिक भक्ति, जीव मैत्री, विनय, वैयावच्च, सादगी, समर्पण आदि अपरिमेय गुण समृद्धि उनको जन्मसे ही मिली हुई है ।
बिल्कुल सामान्य आर्थिक परिस्थितिमें से पसार होकर प्रारब्ध और प्रामाणिक पुरुषार्थ के द्वारा करोड़पति बनने के बाद भी अपने वयोवृद्ध पिताश्री की चरण सेवा अपने हाथों से करते हुए उनको मैंने अपनी
आँखों से देखा तब उनका विनय और कृतज्ञता गुण देखकर अंतःकरण अहोभाव से उभर गया ।... माता-पिताकी सेवा के द्वारा संप्राप्त उनके आशीर्वादों से ही वे आज लाखों लोगों के प्रिय बन सके हैं ।
कई वर्षों से प्रतिदिन श्रीसिद्धचक्रजीका पूजन एवं अरिहंत परमात्मा की विशिष्ट भक्ति करने से आज वे स्वयं सिद्धचक्रजी के सार रूप अहँ स्वरूपी स्व-स्वरूपमें सुस्थित हो गये हैं।
गांधीधाममें पधारते हुए किसी भी समुदाय के परिचित या अपरिचित प्रत्येक साधु-साध्वीजी भगवंतोंकी हर प्रकारकी वैयावच्च-भक्ति अत्यंत उल्लसित भाव से कई वर्षों से वे करते हैं । गांधीधाम की दोनों
ओर माथक और पदाणा गाँवमें जैन श्रावकों के घर नहीं होने से वहाँ पधारते हुए प्रत्येक साधु-साध्वीजी भगवंतों की गोचरी-पानी आदि की बहुरत्ना वसुंधरा - २-11