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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग २
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साध्वी श्री वसंतप्रभाश्रीजी (वैराग्यदेशनादक्ष प.पू. आ.भ. श्री विजय हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की बहन म. सा.) भी १६ साध्वीजीयों के परिवार के साथ गुजरात से विहार करके बेंगलोर पधारे । पूज्यश्रीने दीक्षा के लिए वि.सं. २०४७ में फाल्गुन कृष्णा तृतीया, रविवार दि. ३-३-९१ का शुभ मुहूर्त प्रदान किया । दीक्षा की जाहिरात होते ही जगह जगह से अनुमोदना के साथ साथ बहुमान के लिए आग्रहपूर्ण निमंत्रण मिलने लगे । विजयवाड़ा, इरोड़, अहमदाबाद, मद्रास एवं मुम्बई में मलाड़, इर्ला, भायखला, गोड़ीजी, गोवालिया टेंक इत्यादि में शासनप्रभावक पूज्योंकी निश्रामें अनुमोदना बहुमान के कार्यक्रम आयोजित हुए। जिनमें २५० से अधिक दंपतिओंने संपूर्ण या आंशिक ब्रह्मचर्य व्रतका स्वीकार किया । बेंग्लोरमें करीब १२५ जितने दंपतिओंने भावोल्लास के साथ संपूर्ण या आंशिक रूप से ब्रह्मचर्य व्रतका स्वीकार करके उनको अपने घरमें भोजन करवाया था । सा. श्री वसंतप्रभाश्रीजीकी प्रेरणा से २०० से अधिक भावुकोंने ५ या १० सालमें नवलाख नवकार महामंत्रका जप करने की प्रतिज्ञा ली !... और भी कई लोगोंने इस निमित्त से विविध अभिग्रह धारण किये थे ।
सुवर्ण में सुगंध की तरह अहमदाबाद के तीन श्रद्धा संपन्न, वयस्क, १२ व्रतधारी सुश्रावकोंकी दीक्षा का आयोजन भी उन्हीं के साथ बेंग्लोर में जिन्होंने हुआ । (१) दीपकला साड़ी सेन्टरवाले दीपकभाई शाह करोड़पति होते हुए भी कई वर्षो से अपने लिए नये कपड़े नहीं सिलाये थे, पाँवमें जूते नहीं पहने थे, और जो अपने बंगले के एक ही कमरे में सामायिक - पौषध और स्वाध्यायमें मस्त रहते थे (२) दूसरे श्री रतिलालभाई शाह ( चाय वाले ) जो कई वर्षों से उपाश्रममें ही सोते थे और पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों की उल्लासपूर्वक भक्तिं करते हुए संयम की भावना भाते थे ( ३ ) तीसरे श्री रसिकभाई कि जो नित्य बियासन तप के साथ कई वर्षों से धार्मिक पाठशाला में मानद सेवा के रूप में ४ प्रकरण, तत्त्वार्थ सूत्र इत्यादि का अध्ययन कराते थे और हररोज खड़े खड़े १०० लोगस्सका कार्योत्सर्ग करते थे । जतीनभाई की दीक्षा की बात सुनकर वे भी दीक्षा ग्रहण करने के लिए तुरंत तैयार हो गये ।
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