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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - २
१४५ १० वर्ष के सह-जीवन के बाद भी आबाल ८७
ब्रह्मचारी मुमुक्ष दंपती भारतीवहन/ जतीनभाई शाह
का अति अदभुत रोमहर्षक जीवन वृत्तांत । विवाह की प्रथम रात्रि से लेकर आजीवन अखंड बाल ब्रह्मचारी, कच्छ-भद्रावती नगरी के सुप्रसिद्ध दंपती विजय सेठ और विजया सेठानी के दृष्टांतमें अगर किसीको काल्पनिकता या असंभवितता लगती हो, तो उन्हें वर्तमान कालमें विद्यमान आबाल ब्रह्मचारी दंपती भारतीबहन और जतीनभाई शाह का यह रोमहर्षक द्रष्टांत खास मननपूर्वक पढकर अपनी मान्यतामें सुधार करना चाहिए ।
मूलतः कच्छ-मुन्द्रा के निवासी जतीनभाई शांतिलाल शाह का जन्म मद्रासमें हुआ था । १५ वर्षकी "टीन एइज" में ही पूर्वके पुण्यानुबंधी पुण्यका उदय हुआ और उनको वर्धमान तपोनिधि प. पू. आचार्य भगवंतश्री विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी म. सा. (उस वक्त गणिवर्य श्री) का सत्संग संप्राप्त हुआ; और वह सत्संग ही उनके जीवन परिवर्तन का बीज बन गया । आइए, हम उस पुण्य प्रसंग का कुछ विस्तार से आस्वाद लें।
बाल्यवयमें से किशोर अवस्थामें प्रविष्ट हुआ जतीन, परम पावन तीर्थभूमि श्री समेतशिखरजी के समीपवर्ती झरिया गांवमें रहता था । उस वक्त वह केवल जन्म से ही श्रावक था । जिनशासन की शोभा बढ़ानेवाले मुनिवरों के निर्मल जीवन से वह बिल्कुल अपरिचित था । घर के पासमें . ही रहा हुआ जिनमन्दिर तो उसके लिए क्रीडांगन ही था, न कि आराधना का आस्थान !
ऐसी मनोदशावाले जतीनकुमार के पुण्योदय से वर्धमान तपोनिधि परम पूज्य गणिवर्य श्री भानुविजयजी म. सा. झरिया गाँवमें पधारे । सर्व प्रथम बार जतीनकुमार ने बुद्धिपूर्वक साधु पुरुष के दर्शन किए और उसे लगा कि ऐसे मुनिवरों को पूर्व में कहीं देखा जरूर हैं ।
___ पहचान नहीं होते हुए भी जतीन को पूज्यश्री के प्रति पूर्व जन्मके बहुरत्ना वसुंधरा - २-10