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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ करते हैं, रात्रिभोजन एवं जमीकंद आदि अभक्ष्यों का त्याग करते हैं ।
(१) कोली गंगाराम रणछोड़ (२) झीणीबाई गंगाराम (३) कोली राधुभाई रणछोड़ (४) सेजीबाई राधु । ।
___प्राग्पुर से उत्तरमें ४ कि.मी. की दूरी पर उमैया गाँवमें हरिजन जाति के निम्नोक्त लोग जैन धर्म का पालन करते हैं ।
(१) हरिजन कांथड काना (२) हरिजन घेनीबाई कांथड (३) हरिजन देवा काना (४) हरिजन रामजी काना (५) हरिजन गोविंद कांथड (६) हरिजन भचु काना । इन सभी परिवारों में जमीकंद आदि अभक्ष्य भक्षण वर्ण्य है । रात्रिभोजन भी शक्यतानुसार त्याग करने की कोशिश करते हैं ।
उपरोक्त सभी परिवार अपने घरमें तीर्थकर परमात्मा की तस्वीरें रखते हैं। प्रातःकाल में परमात्मा की तस्वीर का दर्शन करके बाद में ही कृषि हेतु खेतमें जाते हैं और शाम को घर लौटकर प्रभुदर्शन करके अपना जीवन धन्य मानते हैं।
ये सभी परिवार जमीकंद का भक्षण तो करते नहीं है किन्तु जमीकंद की खेती भी नहीं करते हैं। वे मानते हैं कि जमीकंद को बोनेवाले तथा खानेवाले मनुष्यों को एवं पशुओं को भी बहुत पाप लगता है।
.. इनके अलावा मूलतः वल्लभपुर गाँव के निवासी किन्तु वर्तमान में रापर में रहते हुए हरिजन बेचर आला और उनकी धर्मपली जादवणीबाई भी जैन धर्म का पालन करते हैं । रात्रिभोजन एवं जमीकंद आदि अभक्ष्य का त्याग किया है । ३ साल पूर्व उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत भी विधिपूर्वक . अंगीकार किया है । वे सामायिक एवं नवकार महामंत्रका जप भी करते हैं।
भीमासर गाँव में भी कुछ हरिजन जैन धर्म का पालन करते हैं । उपरोक्त हरिजन भाणाभाई, मावजीभाई, बेचरभाई, जादवणी बहिन एवं मोंधी बहन शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोह में पधारे थे । उनकी तस्वीरें प्रस्तुत पुस्तक में पेज नं. 17 के सामने प्रकाशित की गयी हैं । इनमें से भाणाभाई के सिवाय बाकी के ४ भाग्यशालीओंने अनुमोदना समारोह के पश्चात्