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________________ ८० बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ को उनके सत्संग रूपी पारसमणिका स्पर्श हुआ और जीवदयाकी दृष्टिसे दोनों व्यवसायोंको बंध करके दूध-दहीका व्यवसाय उन्होंने चालू कर दिया । ( जैन कुलमें जन्म पाकर भी हररोज असंख्य या अनंत स्थावर और त्रस जीवोंकी हिंसासे चलनेवाले १५ प्रकारके कर्मादानोंमें से किसी न किसी प्रकारका व्यवसाय करनेवाले श्रावक इस दृष्टांतमें से प्रेरणा लें तो कितना अच्छा होगा ! ) उत्तरोत्तर धर्मरुचि बढती गयी । आज वे प्रतिदिन जिनालय के गर्भगृहका शुद्धिकरण, प्रभुजीकी प्रक्षाल एवं स्व द्रव्यसे अष्टप्रकारी जिनपूजा करते हैं । 1 अक्सर आयंबिल, उपवास आदि तपश्चर्या करते हैं । उन्होंने अठ्ठाई और उपधान तप भी कर लिया है। केशलुंचन भी करवाते हैं । उनकी सुपुत्रीने पाँच प्रतिक्रमण कंठस्थ कर लिये हैं और दीक्षा नेकी भावना है । टी. वी. वीडियोके इस जमानेमें जैनकुलोत्पन्न बच्चोंको भी धार्मिक पाठशालामें भिजवाने में या प्रतिक्रमणादिका अभ्यास करवाने में माता पिताओं को अत्यंत कठिनाईका अनुभव होता है, तब लोहार जातिके गणपतभाई ने अपनी सुपुत्रीको पाँच प्रतिक्रमण तक धार्मिक अभ्यास करवाकर सचमुच अत्यंत अनुमोदनीय आदर्श खडा किया है । उनके परिवारमें निम्नोक्त सदस्योंने अठ्ठाई तप आदि आराधना की है। (१) चंचलबेन नारायणदास पंचाल (१६) उपवास, ६४ प्रहरी पौषध, बीसस्थानक तप, वर्धमान तप इत्यादि ।) (२) सरोजबेन नारायणदास पंचाल (३) गणपतभाई नारायणदास पंचाल (४) रमीलाबेन नारायणदास पंचाल (५) मनीषाबेन गणपतभाई पंचाल (६) कैलासबेन गणपतभाई पंचाल । पता : गणपतभाई नारायणदास पंचाल मु. पो. करबटिया, ता. खेरालु, जि. महेसाणा ( उत्तर गुजरात)
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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