________________
बहुरत्ना वसुंधरा : भाग
७३
प्रत्येक जैन माता-पिताओंको चाहिए कि वे अपने बच्चोंको महेसाणा, और नाकोड़ा जैसी जैन तत्त्वज्ञान विद्यापीठों में, जैन पाठशालाओंमें, धार्मिक ज्ञानसत्रों (शिबिरों) में और उपाश्रयोंमें साधु-साध्वीजी भगवंतोंके पास भेजकर, एवं घरमें धार्मिक अध्यापकोंको ट्युशन के लिए बुलाकर घरमें आकर्षक धार्मिक किताबोंका संग्रह करके और स्वयं भी यथाशक्ति हितशिक्षा देकर, जैन-धर्म के सर्वोत्तम, कल्याणकारी सिद्धांतोंके रहस्यों से बचपन से ही प्रभावित करें अन्यथा आधुनिक विलासी वायुमंडलमें उनके जीवन का सर्वनाश होने में देर नहीं लगेगी और अंतमें माता पिताओंको ही पछताने का अवसर आयेगा । सुज्ञेषु किं बहुना ?
-
२९
-
-
१
पता : प्रो. पी. पी. राव, २, जीवन अप्सरा, १४७ अ संतफान्सीस रोड़, विलेपार्ला (पश्चिम) ४०००५६, फोन : ६१५१३५७
मुंबई
वर्धमान आयंबिल तपकी नींव डालनेवाले महाराष्ट्रीयन पेइन्टर बाबुभाई राठोड़
सं. २०४९ में हमारा चातुर्मास मणिनगर ( अहमदाबाद) में हुआ था। तब उपाश्रयमें दाताओं की नामावली लिखने के लिए आनेवाले महाराष्ट्रीयन पेइन्टर बाबुभाई राठोड (उ. व. ५७) प्रायः हररोज व्याख्यान में आते थे । 'उपमिति भव प्रपंचा महाकथा' ग्रंथरत्न के प्रवचनोंमें उनको अत्यंत रस आने लगा था ।
पर्युषणसे पहले संघ प्रमुख श्री लक्ष्मीचंदभाई छेड़ा आदि अनेक श्रावक-श्राविकाओंने वर्धमान आयंबिल तपकी नींव डाली तब पेइन्टर श्री बाबुभाई को प्रेरणा करने पर वे भी वर्धमान तप प्रारंभ करने के लिए सहर्ष तैयार हो गये । इससे पहले उन्होंने कभी एक भी आयंबिल या उपवास किया नहीं था फिर भी चढ़ते परिणामसे एक आयंबिल, एक उपवास २ आयंबिल एक उपवास ... इत्यादि क्रमसे पाँच आयंबिल एक