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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १
करीब १२ साल पहले प.पू.आ.भ. श्रीजयंतसेनसूरीश्वरजी म.सा. विहार करते हुए कुक्षी गाँवमें पधारे थे । तब बाबुलालभाई ने अंत:प्रेरणासे अनेक लोगोंकी उपस्थितिमें आचार्य भगवंत के पास जिंदगीमें कभी भी मद्यपान न करने की प्रतिज्ञा ले ली । उनके परिवारमें भी कोई मद्यपान नहीं करते हैं। गत वर्ष भी उपर्युक्त आचार्य भगवंत के चातुर्मासमें बाबुभाई
ने ३ दिन नवकार मंत्रकी तपश्चर्या की थी। प्रातः भक्तामर पाठ भी करते थे। . पर्युषणपर्व आदिमें वे नियमित रूपसे व्याख्यान श्रवण करते हैं
और यथाशक्ति व्रत-पच्चक्खाण करते हैं। . - शास्त्रोंमें चतुर्विध श्रीसंघको जंगम तीर्थ की उपमा दी गयी है। संसार सागरसे तारे उसे तीर्थ कहा जाता है । चतुर्विध श्रीसंघमें श्रावकश्राविकाओं का भी समावेश होता है । अर्थात् जो तत्त्वत्रयी (सुदेव-सुगुरुसुधर्म) की उपासना द्वारा स्वयं संसार सागरसे तैरें और अपने संपर्क में आनेवाले दूसरे जीवों को भी संसार सागर से तारने के निमित्त बनें ऐसे श्रावक-श्राविकाओंका समावेश चतुर्विध श्रीसंघमें होता है । प्रस्तुत दृष्टांतमें सुश्रावक श्रीखेमचंदजी और उनके पुत्र पौत्रादि के सत्संगसे एक झुलाहे के जीवनमें शुभ परिवर्तन आया, इसी तरह प्रत्येक श्रावक-श्राविकाओंको अपना जीवन ऐसा बनाना चाहिए ताकि वे स्वयं संसार सागरसे पार उतरें एवं दूसरों को भी पार उतारनेमें निमित्त बन सकें । कमसे कम अपने परिवार के सदस्यों को पार उतारनेमें तो अवश्य निमित्त बनें । इसके लिए स्वयंको सुदृढ रूपसे जिनाज्ञापालक बनाना चाहिए । खेमचंदभाई सपरिवारका दृष्टांत सभीके लिए प्रेरणादायक बने यही शुभेच्छा।
__बाबुलालभाई शंखेश्वर तीर्थमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें पधारे थे। उनकी तस्वीर पेज नं. 15 के सामने प्रकाशित की गयी है।
पता : बाबुलालभाई जवरचंदजी चौहान मुखर्जी मार्ग, वोर्ड नं. १२, रामदेव गली, मु. पो. कुक्षी, जि. धार (मध्यप्रदेश) पिन : ४५४३३१