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बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - १ नवकार महामंत्रका जप करते हैं और नीतिपूर्वक व्यवसाय करते हैं ।
३ साल पहले उन्होंने पर्युषणमें अठ्ठाई तप (८ उपवास) के साथ ६४ प्रहरी पौषध किये थे और नवपदजी की ओलीमें ९ आयंबिल भी किये थे, उसमें भी अंतिम दिनमें पौषध किया था ।
गत वर्ष पर्युषणमें ६४ प्रहरी पौषध के साथ १६ उपवास ( सोलभत्ता) की आराधना सुप्रसिद्ध लेखक - वक्ता प.पू. आचार्य भगवंत श्री विजयरत्न सुंदरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रामें डोंबीवलीमें की थी ।
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वे रोज संयमकी भावना भाते हैं । उनको धर्मकी आराधना बहुत ही पसंद है । वे कहते हैं कि 'सचमुच जैन धर्म अत्यंत महान् है । ऐसा महान् धर्म मिलने के लिए मैं अपनी आत्माको बहुत ही भाग्यशाली मानता हूँ और शेष जीवन धर्म आराधना करते-करते गुरु भगवंतों के चरणोमें बीताना है' ।
गजराजभाई को एवं उनको जैन धर्ममें जोड़ने वाले श्रावक परिवार को हार्दिक धन्यवाद सह अनुमोदना । अन्य श्रावक भी इसमें से प्रेरणा ग्रहण करें और ऐसे धर्मात्माकी उचित रूपसे साधर्मिक भक्ति करके उनके हृदयमें धर्मके प्रति अहोभाव बढ़ानेमें निमित्त बनें यही शुभ
भावना ।
शंखेश्वरमें आयोजित अनुमोदना समारोहमें गजराजभाई भी पधारे थे। उनकी तस्वीर के लिए देखिए पेज नं. 16 के सामने ।
पता : गजराजभाई मंडराई मोची
C/o देवेन्द्रभाई आणंदजी गडा,
बी-२, सांईकृपा, दत्तमंदिर रोड,
डोंबीवली (पूर्व) जि. थाणा (महाराष्ट्र) पिन ४२१२०१.